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खेल तमाशा

मनोरमा चन्द्रा
रायपुर(छत्तीसगढ़)
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दो वक़्त की रोटी के लिए,
जोखिम कितना उठाने लगी।
छोटी-सी उम्र में बखूबी,
सभी दायित्व निभाने लगी।

बचपन तू कर रही कुर्बान,
खोने लगा तेरा बालपन।
सारे सपने त्याग रही तू,
कुलीन बेटी तू है महान।

लाचार हो गये हैं मानव,
चुप्पी साधे सभी खड़े हैं।
अभावहीन बच्ची का खेल,
देखने सभी लोग जुटे हैं।

जिस उम्र में तू स्कूल जाती,
उस उम्र में मेहनत करती।
बंद आँख से रस्सी चढ़ती,
अपने सभी का पेट भरती।

पढ़ना-लिखना सभी छोड़कर,
हाथों में बाँस तू धर चली।
खेल तमाशा नित्य दिखाकर,
अंतर्मन को तू मोह चली॥

परिचय-श्रीमति मनोरमा चन्द्रा का जन्म स्थान खुड़बेना (सारंगढ़),जिला रायगढ़ (छग) तथा तारीख २५ मई १९८५ है। वर्तमान में रायपुर स्थित कैपिटल सिटी (फेस-2) सड्डू में निवासरत हैं,जबकि स्थाई पता-जैजैपुर (बाराद्वार),जिला जांजगीर चाम्पा (छग) है। छत्तीसगढ़ राज्य की श्रीमती चंद्रा ने एम.ए.(हिंदी) सहित एम.फिल.(हिंदी व्यंग्य साहित्य), सेट (हिंदी)सी.जी.(व्यापमं)की शिक्षा हासिल की है। वर्तमान में पी-एचडी. की शोधार्थी(हिंदी व्यंग्य साहित्य) हैं। गृहिणी व साहित्य लेखन ही इनका कार्यक्षेत्र है। लेखन विधा-कहानी,कविता,हाइकु,लेख (हिंदी,छत्तीसगढ़ी)और निबन्ध है। विविध रचनाओं का प्रकाशन कई प्रतिष्ठित दैनिक पत्र-पत्रिकाओं में छत्तीसगढ़ सहित अन्य क्षेत्रों में हुआ है। आप ब्लॉग पर भी अपनी बात रखती हैं। इनके अनुसार विशेष उपलब्धि-विभिन्न साहित्यिक राष्ट्रीय संगोष्ठियों में भागीदारी व शोध-पत्र प्रस्तुति,राष्ट्रीय-अंतर्राष् ट्रीय पत्रिकाओं में १३ शोध-पत्र प्रकाशन व  साहित्यिक समूहों में लगातार साहित्यिक लेखन है। मनोरमा जी की लेखनी का उद्देश्य-हिंदी भाषा को लोगों तक पहुँचाना व साहित्य का विकास करना है।

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