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जिन्दगी तू निशां पीढ़ियों तक बना

हीरा सिंह चाहिल ‘बिल्ले’
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)

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(रचना शिल्प:२१२ २१२ २१२ २१२)
जिन्दगी जी रहे जैसे कर दी खता,
सब जियें पर न अगले ही पल का पता।
उम्र जितनी मिली वो बितानी पड़े,
चाह वर्षों की ना एक पल का पता॥
जिन्दगी जी रहे…

जिन्दगी के गजब खेल अनजाने से,
जिस हवा से चले साँस वो न दिखे।
रक्त रग में बहे तब धड़कता है दिल,
दिल की धड़कन रुके कब न इसका पता॥
जिन्दगी जी रहे…

जान से वर्षों तक जिस्म चलता रहे,
पल में निकले तो जिस्मों की हरकत रुके।
क्या बनाया खुदा ने वही जानता,
अनगिनत जिन्दगी को न इसका पता॥
जिन्दगी जी रहे…

एक जीवन सफर पर मुसाफिर अलग,
एक मन्जिल के होते मुसाफिर अलग।
होगा अगला कदम फूल या शूल पर,
रखना पड़ता,भले हो न इसका पता॥
जिन्दगी जी रहे…

उम्रभर की मशक्कत हो पल में खतम,
जिन्दगी उम्रभर करती कितने जतन।
कौन-सा पल बने उम्र का आखरी,
जिन्दगी को चले ही न इसका पता॥
जिन्दगी जी रहे…

छूट जाते यहीं जिन्दगी के निशां,
याद कुछ दिन रहें जैसे बनते निशां।
जिन्दगी तू बना ऐसे अपने निशां,
पीढ़ियाँ सब कहें उनको इसका पता॥
जिन्दगी जी रहे…जैसे कर दी खता,
सब जियें पर,न अगले ही पल का पता…॥

परिचय-हीरा सिंह चाहिल का उपनाम ‘बिल्ले’ है। जन्म तारीख-१५ फरवरी १९५५ तथा जन्म स्थान-कोतमा जिला- शहडोल (वर्तमान-अनूपपुर म.प्र.)है। वर्तमान एवं स्थाई पता तिफरा,बिलासपुर (छत्तीसगढ़)है। हिन्दी,अँग्रेजी,पंजाबी और बंगाली भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री चाहिल की शिक्षा-हायर सेकंडरी और विद्युत में डिप्लोमा है। आपका कार्यक्षेत्र- छत्तीसगढ़ और म.प्र. है। सामाजिक गतिविधि में व्यावहारिक मेल-जोल को प्रमुखता देने वाले बिल्ले की लेखन विधा-गीत,ग़ज़ल और लेख होने के साथ ही अभ्यासरत हैं। लिखने का उद्देश्य-रुचि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-कवि नीरज हैं। प्रेरणापुंज-धर्मपत्नी श्रीमती शोभा चाहिल हैं। इनकी विशेषज्ञता-खेलकूद (फुटबॉल,वालीबाल,लान टेनिस)में है।

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