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तुम अटल थे,अटल ही रहे

डाॅ. मधुकर राव लारोकर ‘मधुर’ 
नागपुर(महाराष्ट्र)

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तुम अटल थे,अटल ही रहे,
अन्त तक ध्रुव तारे,की तरह।
भारतीय राजनीति की
उठा पटक,जोड़ तोड़ को,
ना स्वीकारा,ना करने दिया।
जीवन में प्रभु,राम की तरह
राजनीति में मर्यादा व,
शुचिता को स्थान दिया।
होम किया अपना जीवन,
देश व जनता के लिए।

अन्याय,असमानता की खिलाफत की
शोषितों के मसीहा बन,
जीया सिर्फ देश के लिए।
तुमने हमेशा,मान बढ़ाया देश का,
अपने कर्मों और विचारों से।
निर्भीकता,स्पष्टता व सत्यता का,
दामन न छोड़ा,राज की नीतियों से।
तुम रहे,जितेन्द्रिय योद्धा,
न झुकने ना,समझौता करने वाले।
बन दर्पण चेहरा,दिखाया नेताओं को,
कथनी करनी में,भेद न करने वाले।

विश्व में,मान बढ़ाया,
सदैव ही,तिरंगे का।
भाषा,जात,मज़हब को
समान समझ,परचम लहराया,
भारतीयता का।

कोटिशः नमन,वंदन तुम्हें हमारा,
गुणों के हिमालय,रहे तुम।
न हुआ ना होगा,तुम जैसा लाल,
सदियों दिलों पर,राज करोगे तुम।
तुम अटल थे,अटल ही रहे,
अंत तक,ध्रुव तारे की तरह॥

परिचय-डाॅ. मधुकर राव लारोकर का साहित्यिक उपनाम-मधुर है। जन्म तारीख़ १२ जुलाई १९५४ एवं स्थान-दुर्ग (छत्तीसगढ़) है। आपका स्थायी व वर्तमान निवास नागपुर (महाराष्ट्र)है। हिन्दी,अंग्रेजी,मराठी सहित उर्दू भाषा का ज्ञान रखने वाले डाॅ. लारोकर का कार्यक्षेत्र बैंक(वरिष्ठ प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त)रहा है। सामाजिक गतिविधि में आप लेखक और पत्रकार संगठन दिल्ली की बेंगलोर इकाई में उपाध्यक्ष हैं। इनकी लेखन विधा-पद्य है। प्रकाशन के तहत आपके खाते में ‘पसीने की महक’ (काव्य संग्रह -१९९८) सहित ‘भारत के कलमकार’ (साझा काव्य संग्रह) एवं ‘काव्य चेतना’ (साझा काव्य संग्रह) है। विविध पत्र-पत्रिकाओं में आपकी लेखनी को स्थान मिला है। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में मुंबई से लिटरेरी कर्नल(२०१९) है। ब्लॉग पर भी सक्रियता दिखाने वाले ‘मधुर’ की विशेष उपलब्धि-१९७५ में माउंट एवरेस्ट पर आरोहण(मध्यप्रदेश का प्रतिनिधित्व) है। लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी की साहित्य सेवा है। पसंदीदा लेखक-मुंशी प्रेमचंद है। इनके लिए प्रेरणापुंज-विदर्भ हिन्दी साहित्य सम्मेलन(नागपुर)और साहित्य संगम, (बेंगलोर)है। एम.ए. (हिन्दी साहित्य), बी. एड.,आयुर्वेद रत्न और एल.एल.बी. शिक्षित डाॅ. मधुकर राव की विशेषज्ञता-हिन्दी निबंध की है। अखिल भारतीय स्तर पर अनेक पुरस्कार। देश और हिन्दी भाषा के प्रति विचार-
“हिन्दी है काश्मीर से कन्याकुमारी,
तक कामकाज की भाषा।
धड़कन है भारतीयों की हिन्दी,
कब बनेगी संविधान की राष्ट्रभाषा॥”

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