कुल पृष्ठ दर्शन : 306

You are currently viewing अधर में लटकी है पाकिस्तान सरकार

अधर में लटकी है पाकिस्तान सरकार

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली) 
*******************************

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने भारतीय विदेश नीति की खुले-आम तारीफ करके अपना फायदा किया है या नुकसान,कुछ कहा नहीं जा सकता। इस वक्त पाकिस्तान की फौज और उनके गठबंधन के कुछ सांसद उनसे इतने नाराज़ हैं कि उनकी सरकार अधर में लटकी हुई है। यदि इस्लामी सहयोग संगठन (ओआईसी) के सम्मेलन में ५० देश भाग लेने के लिए इस्लामाबाद नहीं पहुंच रहे होते तो इमरान सरकार शायद अब तक गुड़क जाती। लगभग उनके २ दर्जन सांसदों ने बगावत का झंडा खड़ा कर दिया है। पाकिस्तानी संसद में वे सिर्फ ९ सांसदों के बहुमत से अपनी सरकार चला रहे हैं। पाकिस्तान में इमरान के बागी सांसद तभी पार्टी का साथ देंगे जबकि इमरान की जगह उनके विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी या परवेज खट्टक को प्रधानमंत्री बना दिया जाए। इनके नामों पर फौज सहमत हो सकती है। फौज के घावों पर इमरान ने यह कहकर नमक छिड़क दिया है कि पाकिस्तानी विदेश नीति हमेशा किसी न किसी महाशक्ति की गुलामी करती रही है,जबकि भारत हमेशा आजाद विदेश नीति चलाता रहा है। भारत ने यूक्रेन के मामले में भी अमेरिका और नाटो देशों का समर्थन नहीं किया है। अमेरिका के साथ भारत के सामरिक रिश्ते घनिष्ट हैं लेकिन वह रूस से तेल आयात कर रहा है। यूरोपीय देशों के राजदूत पत्र लिखकर पाकिस्तान को उपदेश दे रहे हैं कि वह रूस की निंदा करे,तो पाकिस्तान को उन्होंने क्या गरीब की जोरु समझ रखा है ? उन्होंने कहा है कि मैं पाकिस्तान का सिर ऊँचा रखूंगा। न किसी के आगे कभी झुका हूँ, न पाकिस्तान को झुकने दूंगा। इमरान ने यह भी याद दिलाया कि अगस्त में जब अमेरिकी अफगानिस्तान खाली कर रहे थे तो उन्होंने पाकिस्तान से एक सैन्य अड्डे की सुविधा मांगी थी तो उन्होंने साफ इंकार कर दिया था। प्रधानमंत्री इमरान का भारत के प्रति रवैया अन्य पाकिस्तानी नेताओं से भिन्न मालूम पड़ा है। प्रधानमंत्री बनने के तुरंत बाद उन्होंने भारत के बारे में जो बयान दिए थे, उसमें भी वह प्रकट हुआ था, लेकिन पाकिस्तान की फौज और नेतागण हमेशा भारत से इतने डरे रहते हैं कि वे कभी अमेरिका या कभी चीन की गोद में बैठकर ही अपने-आपको सुरक्षित समझते हैं। प्रधानमंत्री के तौर पर इमरान खान भी अभी तक इसी नीति पर चलते रहे हैं। २-४ साल तक प्रधानमंत्री बने रहने पर हर पाकिस्तानी नेता फौज के वर्चस्व से मुक्त होना चाहता है लेकिन हमने बेनजीर भुट्टो और नवाज़ शरीफ का हश्र देखा है। क्या मालूम, इमरान खान भी उसी तरह उछाल कर फेंक दिए जाएं। उन्हें तख्ता-पलट के द्वारा नहीं, मत-पलट द्वारा उलट दिया जा सकता है।

परिचय– डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।

Leave a Reply