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आनन्द की अनुभूति

सरोजिनी चौधरी
जबलपुर (मध्यप्रदेश)
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क्या कहते हो, ध्यान में बैठना मुश्किल है ?
मन चंचल आँख बंद करते ही इधर-उधर भागता है ?
देखो, आरंभ में उदासी लगेगी, लगने देना,
थोड़ी उलझन परेशानी लगेगी, लगने देना,
बस पाँच मिनट चुपचाप एकांत में बैठना,
धीरे-धीरे समय थोड़ा बढ़ाना, अच्छा लगेगा,
न कुछ सोचना-न कुछ बोलना, न कोई मंत्र पढ़ना,
कुछ नहीं करना है, चुपचाप बैठना है एकांत में,
फिर भी यदि मन में विचार चलते हैं, तो चलने देना,
उन विचारों को निरपेक्ष भाव से देखना,
जैसे आकाश में उड़ते हुए बादलों को देखते हैं,
निष्प्रयोजन और तटस्थ होकर बस देखते रहना,
और तब धीरे-धीरे अभ्यास से वह समय आएगा,
जब सब शांत होने लगेगा,
ऐसा लगेगा किसी सन्नाटे में प्रवेश कर रहे हैं,
एक बार पंख खुले तो जैसे आकाश में उड़ रहे हैं,
फिर तो बस ‘ॐ’ की ध्वनि सुनाई देती है,
अनाहत नाद कानों में मधुर स्वर में गूँजता है।
ध्यान में अपूर्व आनन्द अपूर्व सुख की अनुभूति होती है,
‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ के भाव की जागृति होती है॥