मानसी श्रीवास्तव ‘शिवन्या’
मुम्बई (महाराष्ट्र)
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जीवन है ज्योत मनुष्य का,
मानवता के मूल्यों का।
एक-दूसरे पर किए गए
परोपकार के लेन-देन का।
इतिहास उठा कर देखते हैं तो,
ज्ञान होता है कर्मों का।
जिसके जैसे थे कर्म,
मिला है उसे वैसा फल।
अहंकारी रावण हो या,
मर्यादित श्री राम हो।
कौरवों का घमंड हो या,
पांडवों का विश्वास हो।
प्रारंभ सभी का कर्म से है,
और अंत भी हुआ है कर्म से।
पशु-पक्षियों के भी लिखे होते हैं भाग्य,
अपना जीवन-यापन करना उनका नित काम।
कर्म करने के लिए रखो एक निष्ठा,
न सोचो कभी किसी का बुरा और न करो निंदा।
तत्पर रहो हमेशा जरूरतमंद के लिए,
न गिनाना काम जो तुमने कभी किए।
यह कर्मफल का खेल है,
जो खेल गया वो खिलाड़ी है।
नापी-तौली भरी ज़िंदगी में,
कर्म शक्ति ही अधिकारी है॥