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कवक संक्रमण का सामान्य और प्रभावी इलाज है आयुर्वेद में

डॉ.अरविन्द जैन
भोपाल(मध्यप्रदेश)
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फंगल इन्फेक्शन को कवक संक्रमण के नाम से भी जाना जाता है,यह एक सामान्य समस्या है जो तब होता है,जब शरीर के किसी अंग पर कवक लग जाती है और हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली उससे लड़ नहीं पाती है,जिससे हमारा शरीर प्रभावित होना शुरू हो जाता है। कवक हवा,मिट्टी, पानी और पौधों में मौजूद हो सकते हैं। पर्यावरण में कवक की ५० हजार से अधिक विभिन्न प्रजातियां हैं,लेकिन केवल २० से २५ प्रजाति मनुष्यों में संक्रमण का कारण बन सकती हैं। कुछ कवक प्राकृतिक रूप से मानव शरीर में मौजूद होते हैं, जिसमें से कुछ उपयोगी होते हैं,तो कुछ नुकसानदायक भी हैं। यह नुकसानदायक कवक जब हमारे शरीर पर आक्रमण करते हैं,तो उन्हें मारना मुश्किल हो सकता है,क्योंकि वे हर तरह के पर्यावरण में जीवित रह सकते हैं। हालांकि,कभी-कभी कुछ कारक कवक को अधिक मात्रा में बढ़ा सकते हैं या बदल सकते हैं,और इससे संक्रमण अधिक हो सकता है। कुछ आसान वस्तुओं के उपयोग से आप इससे बच सकते हैं-

हल्दी-

हल्दी में करक्यूमिन मौजूद होता है जो डीकन्जेस्टैंट की तरह कार्य करता है और खुजली के लक्षणों को ठीक करने में मदद करता है। इसके साथ ही हल्दी में एंटीऑक्सीडेंट और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं,जिससे उपचार जड़ से करते हैं। कांच के जार में ६ चम्मच हल्दी पाउडर और शहद मिलाएं। जब खुजली का मौसम होता है तो इस मिश्रण को दिन में २ बार १-१ चम्मच खाएं, लाभ होगा।

लहसुन-

लहसुन में प्राकृतिक एंटीबायोटिक होते हैं,जो खुजली के लिए काफी प्रभावी हैं। लहसुन के एंटीवाइरल और प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाले गुण आपको चिकित्सक से दूर रखते हैं। १ या २ हफ्ते के लिए रोज़ाना २-३ लहसुन की फांक खाएं। अगर आपको लहसुन की गंध अच्छी नहीं लगती तो आप चिकित्सक से पूछने के बाद लहसुन के पूरक को ले सकते हैं।

शहद-

ज़्यादातर लोगों ने ये कहा है कि बिना कम्पनी का यानी स्थानीय शहद खाने से उन्हें खुजली मौसम के लक्षणों से राहत मिलती है। मधुमक्खियों द्वारा बनने वाला स्थानीय शहद खुजली को दूर करने में मदद करता है। खुजली के लक्षणों से राहत पाने के लिए दिन में ३-४ बार एक या इससे ज़्यादा चम्मच शहद ज़रूर खाएं। अच्छा परिणाम पाने के लिए खुजली मौसम शुरू होने से एक महीना पहला स्थानीय शहद खाना शुरू कर दें।

भाप-

खुजली के कई लक्षणों से राहत दिलाने में भाप खासी मदद करता है। ये इरिटेटेड साइनस से राहत दिलाता है,साथ ही नाक की नली से भी बलगम और अन्य इरिटेंट को भी साफ़ करता है। इसके लिए पानी को भाप निकलने तक उबालें। अब इस पानी को किसी बड़े बर्तन में लें। फिर उसमें ३-४ बूँद नीलगिरी तेल,पेपरमिंट तेल,रोज़मेरी या टी ट्री तेल की डालें। अब सिर पर तौलिए को रखें और बर्तन के पास ध्यान से झुक जाएँ। फिर १० मिनट तक गर्म पानी से भाप लें।

नींबू-

नींबू एक प्राकृतिक एंटीहिस्टामिन है और विटामिन-सी का अच्छा स्त्रोत भी है। इसमें एंटीऑक्सीडेंट के गुण भी होते हैं,व एन्टिटॉक्सिन की तरह भी काम करता है। ये खुजली की समस्या के लिए बेहद फायदेमंद है। मौसम के अनुसार खुजली शुरू होने से पहले रोज़ाना सुबह एक कप पानी में ताज़ा नींबू का जूस निचोड़कर पीना शुरू कर दें। जब तक खुजली मौसम चला नहीं जाता, तब तक रोज़ाना मिश्रण को पीते रहें।

नमक का पानी-

रोज़ाना नाक को तीली से साफ़ करने से राइनाइटिस खुजली के लक्षणों को सुधारने में मदद मिलती है। पहले एक चम्मच बिना आयोडीन का नमक लें और चुटकीभर बेकिंग सोडा लें। इन्हें एक चौथाई गर्म पानी में मिला दें,फिर मिश्रण को ठंडा होने के लिए रख दें। अब सिंक की तरफ झुककर अपनी नाक में इस मिश्रण की १० बूँदें डालें। फिर मिश्रण को नाक या मुँह से निकालें।

सेब का सिरका-

यह खुजली के लिए बहुत ही पुराना उपाय है। इसके एंटीबायोटिक और एंटीहिस्टामिन गुण खुजली प्रतिक्रिया का इलाज करने में मदद करते हैं। ये खुजली के कारणों का इलाज करता है और जल्दी आने वाली छीक,बंद नाक,सिर दर्द और कफ के लक्षणों को भी ठीक करता है। १ चम्मच सेब के सिरके को १ ग्लास पानी में मिलाएं,फिर इसमें १ चम्मच ताज़ा नींबू का रस और १ या आधा चम्मच शहद मिलाकर पी जाएँ।

बिच्छू बूटी-

बिच्छू बूटी मौसम के अनुसार होने वाली क्रोनिक खुजली के लिए बेहद प्रभावी है। प्राकृतिक एंटी हिस्टामिन होने की वजह से बिच्छू बूटी शरीर के हिस्टामिन के उत्पादन को बंद कर देती है,और फिर आखिर में खुजली के लक्षणों से आराम दिलाने में मदद करती है। सबसे पहले १ कप पानी में १ चम्मच सूखे बिच्छू बूटी की पत्तियों को डाल दें। ५ मिनट तक इस मिश्रण को उबलने के लिए रख दें। फिर मिश्रण को छान लें और अब थोड़ा शहद मिलाकर पी जाएँ। इस चाय को दिन में २-३ बार ज़रूर पिएं।

पेपरमिंट-

पेपरमिंट में सूजनरोधी,एंटीऑक्सीडेंट और एंटीबैक्टेरियल गुण होते हैं,जो खुजली प्रतिक्रिया को कम करते हैं। पेपरमिंट चाय बनाने के लिए पहले १ चम्मच सूखे पेपरमिंट की पत्तियों को १ कप पानी में उबालने को रख दें। फिर मिश्रण को छान लें और ठंडा होने के लिए रख दें। अब इसे पीने से पहले इसमें १ चम्मच शहद भी मिला लें। जब तक लक्षणों से निजात नहीं मिल जाती, तब तक दिन में २-३ बार पेपरमिंट चाय का मज़ा लें।

परिचय- डॉ.अरविन्द जैन का जन्म १४ मार्च १९५१ को हुआ है। वर्तमान में आप होशंगाबाद रोड भोपाल में रहते हैं। मध्यप्रदेश के राजाओं वाले शहर भोपाल निवासी डॉ.जैन की शिक्षा बीएएमएस(स्वर्ण पदक ) एम.ए.एम.एस. है। कार्य क्षेत्र में आप सेवानिवृत्त उप संचालक(आयुर्वेद)हैं। सामाजिक गतिविधियों में शाकाहार परिषद् के वर्ष १९८५ से संस्थापक हैं। साथ ही एनआईएमए और हिंदी भवन,हिंदी साहित्य अकादमी सहित कई संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आपकी लेखन विधा-उपन्यास, स्तम्भ तथा लेख की है। प्रकाशन में आपके खाते में-आनंद,कही अनकही,चार इमली,चौपाल तथा चतुर्भुज आदि हैं। बतौर पुरस्कार लगभग १२ सम्मान-तुलसी साहित्य अकादमी,श्री अम्बिकाप्रसाद दिव्य,वरिष्ठ साहित्कार,उत्कृष्ट चिकित्सक,पूर्वोत्तर साहित्य अकादमी आदि हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-अपनी अभिव्यक्ति द्वारा सामाजिक चेतना लाना और आत्म संतुष्टि है।

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