कुल पृष्ठ दर्शन : 204

You are currently viewing गलतफहमी

गलतफहमी

ताराचन्द वर्मा ‘डाबला’
अलवर(राजस्थान)
***********************************************

आज सरला को पूरे ७ साल हो गए अपने पति से दूर रहते हुए। वो बिल्कुल बदल चुकी थी अपने जीवन में। बहुत ही चंचल स्वभाव की प्यारी-सी लड़की,जो हमेशा दूसरों को हँसाती रहती थी,वो आज खुद गुमसुम-सी उदास, बुत बनी बैठी हुई थी। सोच रही थी कि क्यों शेखर ने मेरा, छोटी-सी बात पर बहिष्कार कर दिया ! उसने मेरी भावनाओं को क्यों नहीं समझा! क्या मैं इतनी गिरी हुई लड़की थी जो अपने माँ-बाप व समाज को नीचा दिखाने का काम करती। छी-छी.. कितनी घटिया सोच थी शेखर की। मैंने सपने में भी नहीं सोचा था कि शेखर इतना शक्की स्वभाव का निकलेगा।
सोचते-सोचते सरला अतीत में खो गई थी। महाविद्यालय के दिनों में जब राहुल से मुलाकात हुई थी। राहुल बहुत होशियार लड़का था। कक्षा के सभी छात्र उसी से मदद लिया करते थे। कोई विषय समझ में नहीं आता तो सभी राहुल से ही पूछा करते थे। एक दिन मुझे भी कैमेस्ट्री के नोट्स लेने थे,लेकिन हिम्मत नहीं पड़ रही थी। इसलिए मैं अपनी सहेली सपना को साथ लेकर उसके कमरे पर गई।
एक बार तो राहुल हमें देख कर चौंक गया, लेकिन फिर अपने-आपको सम्भालते हुए बड़ी विनम्रता से बोला,-‘आओ बहन जी कैसे आना हुआ।’

मैंने कहा,-‘भैया मुझे कुछ कैमेस्ट्री के नोट्स चाहिए थे कुछ दिन के लिए।’ उसने कहा था जरुर बहन जी,जितने दिन के लिए चाहिए,आप ले जाना। बाद में मुझे लौटा देना।
मैंने कहा,-‘बहुत-बहुत धन्यवाद भैया।’
राहुल ने हमें नोट्स दिए और विनम्रता से बोला,- बहन जी चाय पीकर जाना।’
मैंने कहा-‘अरे! भैया आप बिल्कुल परेशान मत होइए।’
कितना सज्जन लड़का था राहुल। आज वो व्याख्याता पद पर कार्यरत हैं। और ये मेरी खुशकिस्मती है कि जिस विद्यालय में वो व्याख्याता पद पर कार्यरत हैं उसी में,मैं भी शिक्षिका के पद पर हूँ।
एक दिन मैंने राहुल को घर पर चाय पीने बुला लिया था। हम पुरानी बातों को याद करते हुए चाय पी रहे थे कि अचानक मेरे पति शेखर आफिस से जल्दी घर आ गए थे। शेखर लोक निर्माण विभाग में सहायक अभियंता पद पर कार्यरत थे। मैंने कहा,-‘अरे! शेखर आज आप जल्दी आ गए ! इनसे मिलिए ये राहुल भैया हैं। कालेज के दिनों में हम साथ-साथ पढ़ते थे। आज राहुल मेरे ही विद्यालय में व्याख्याता पद पर कार्यरत हैं।’
शेखर कुछ नहीं बोला और राहुल को बिना भाव दिए ही अन्दर चला गया था। मुझे बहुत बुरा लगा था। खैर,राहुल चाय पीकर चला गया था।
मैं शेखर के पास कमरे में गई। मैंने कहा, -क्या बात है आपकी तबियत तो ठीक है। आपने राहुल से भी बात नहीं की।
शेखर के चहरे पर गुस्से के भाव थे,-तुम थी ना राहुल से बात करने के लिए! शेखर ने कहा। मैं उनके गुस्से को देखकर कुछ नहीं बोली और रसोई में खाना बनाने के लिए चली गई। बस उसी दिन से शेखर मुझसे उखड़े-उखड़े से रहने लगे थे। बात बात पर गुस्सा करना, छोटी-छोटी बातों पर झगड़ना, नाराज होकर घर से चले जाना और फिर कई दिनों तक घर नहीं लौटना। जिन्दगी नरक बन गई थी मेरी। एक दिन तो हद ही हो गई थी, जब शेखर शाम को शराब पीकर घर आया और मुझसे गाली-गलौज करने लगा।
उस दिन उसने दिल की सारी भड़ास बाहर निकाली। जो मुँह में आया बकने लगा- बेहया, बदचलन, गैर मर्दों को घर में बुलाती है। उन्हें चाय पिलाती है। घुट-घुट के बात करती है। शर्म नहीं आती तुम्हें! शेखर जोर जोर से चिल्लाने लगा।
मेरे पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई। आँखों से अश्रुओं की धारा बहने लगी,-शेखर तुम इतनी घटिया सोच रखते हो। मुझे विश्वास नहीं हो रहा था।
मुझे चक्कर आने लगे थे। हमारी एक बिटिया थी नेहा, वो घबरा गई थी, क्योंकि शेखर नशे में धुत्त था।
अब तो ये रोज का तमाशा बन गया था घर में। शेखर की छोटी-सी गलतफहमी ने हमारी जिंदगी नरक बना दी थी। वो रोज शराब पीने लग गया था।
‘मालकिन आज स्कूल नहीं जाना। मालकिन…!’ सरला को एकदम होश आया और वो अतीत से बाहर आई।
‘ओह! कमला, नहीं नहीं। आज मेरा मन नहीं है। सिर बहुत दर्द कर रहा है। एक कप चाय पिला दे।’ सरला ने कहा।
‘ठीक है मालकिन’ कह कर कमला रसोई में चाय बनाने चली गई। कमला उस घर में नौकरानी का काम करती थी।
सरला फिर अतीत में खो गई थी। सोच रही थी कि राहुल को अगर चाय पे नहीं बुलाती तो शेखर को गलतफहमी नहीं होती, लेकिन राहुल तो मेरे भाई के समान था। हर रक्षाबंधन पर शाला में मुझसे राखी बंधवाता था। मैं भी राहुल को अपने सगे भाई से भी ज्यादा मानती थी। फिर शेखर की इतनी घटिया सोच। शेखर इतना शकी कैसे हो गया। सरला का सिर, दर्द से फटा जा रहा था। ये मर्द होते ही ऐसे हैं। अपनी गलती देखते नहीं हैं और दूसरों में कमियां निकालते रहते हैं। उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे।
‘मालकिन चाय।’ कमला ने कहा।
सरला अपने-आपको सम्भालते हुए चाय पीने लगी। ‘कमला, आज सिर बहुत दर्द कर रहा है थोड़ा दबा दो प्लीज़।’
कमला, सरला का सिर दबाने लगती है और झिझकते हुए कहती है,- ‘मालकिन आप साहब को माफ कर दीजिए और उन्हें वापस ले आईए। मुझसे आपका ये दर्द देखा नहीं जाता।’
‘नहीं कमला, अब बहुत देर हो चुकी है।’ सरला ने कहा।
‘कमला तुम्हीं बताओ, मेरी क्या गलती थी। शेखर स्वयं गलतफहमी में था। मैं कितनी रोई थी एवं कितनी गिड़गिड़ाई थी शेखर के सामने। उसने मेरी एक नहीं सुनी थी। मैं क्या करती कमला। उन्होंने मेरी भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया था। और फिर, वही तो मुझे छोड़कर गए थे। बिटिया की भी याद नहीं आईं उन्हें। आज तक सुध नहीं ली उन्होंने हमारी।’ सरला फफक-फफक कर रो पड़ी थी।
कमला ने कहा,-‘मालकिन मैंने एक रोज साहब को बाजार में देखा था। उन्होंने बहुत ज्यादा शराब पी रखी थी। उनकी दाढ़ी बड़ी हुई थी। मालकिन वो रो रहे थे। कह रहे थे सरला तुमने मुझे धोखा दिया है। वो रोते जा रहे थे और बड़बड़ाते जा रहे थे। मालकिन मुझे उन पर बहुत दया आ रही थी। उनको बहुत बड़ी गलतफहमी हुई है। उन्हें माफ कर दीजिए मालकिन।’
‘कैसे माफ़ कर दूं कमला !’ सरला ने कहा। तुम नहीं जानती उन्होंने मेरी जिंदगी ख़राब कर दी है। इतना घटिया लांछन लगाया था मेरे ऊपर। और फिर घर छोड़कर वो गए थे। मैंने थोड़े ही उनको घर से निकाला था।’
कमला ने कहा ,-‘मालकिन मेरा दिल कहता है आप अभी भी साहब से बहुत प्यार करती हो।’ सरला की आँखों से आँसू बह निकले थे।
‘कमला प्लीज़, मुझे अकेली छोड़ दो।’ सरला ने कहा।
उसका दिल रो रहा था। उसकी हिम्मत टूटती नज़र आ रही थी। ‘मालकिन मेरा दिल कहता है कि आप अभी भी साहब से बहुत प्यार करती हो।’… नहीं,नहीं मैं कोई प्यार नहीं करती ऐसे आदमी से, जो औरत की इज्जत ही नहीं करता हो। सरला के दिमाग में बार-बार वो शब्द गूंज रहे थे। उसकी दिमाग की नसें फटी जा रही थी। ऐसे ही कई दिन निकल गए थे। सरला अपनी बीती हुई ज़िन्दगी के बारे में सोचती ही रहती थी।
एक दिन सरला ने सुबह-सुबह जैसे ही दरवाजा खोला,बाहर एक भिखारी को बेहोश पड़े देखकर चौंक गईं। उसने कमला को आवाज लगाई और कहा,-‘कमला बाहर कोई भिखारी बेहोश पड़ा है,उसे खाना देकर भेज दो।’
‘जी मालकिन’ कह कर कमला बाहर भिखारी के पास आई। कमला ने जैसे ही उसे देखा वो एकदम से चौंकी और जोर से चिल्लाई, ‘मालकिन…।’ सरला एकदम घबराती हुई बाहर आई,-‘क्या हुआ कमला, क्यों चिल्ला रही हो?’
कमला की आँखों से अश्रुओं की धारा बहने लगी थी। उसकी आवाज नहीं निकल रही थी। धीरे से बोली ‘मालकिन साहब जी…।’
सरला के ऊपर जैसे पहाड़ टूट पड़ा हो। शेखर की ये हालत। उसके हाथ-पैर कांपने लगे। सरला की आवाज नहीं निकल रही थी। शेखर को होश आ गया था। सरला ने हिम्मत जुटा कर कहा,- ‘कमला इनसे कहो अब क्यों आए है यहां। चले जाएं यहां से। सरला की आवाज डगमगा रही थी। उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे। मेरी जिंदगी नरक बना कर चैन नहीं आया इनको। कभी बिटिया की भी याद नहीं आईं…।’ सरला रोए जा रही थी।
शेखर के मुँह से आवाज नहीं निकल रही थी। उसे पश्चाताप हो रहा था। उसकी आँखों से लग रहा था, जैसे वो कई दिनों से सोया नहीं था। उसने धीरे से कहा,-‘सरला मुझे माफ़ कर दो। मुझे गलतफहमी हो गई थी।’
सरला का हृदय धक-धक करने लगा। कहने लगी,- ‘७ साल लगा दिए आपने इतनी-सी बात कहने में।’
शेखर ने हाथ जोड दिए और कहा, ‘मैं ग़लत था सरला। मैंने तुम्हें समझने में बहुत बड़ी भूल की थी। प्लीज़ मुझे माफ़ कर दो।’
सरला का दिल पसीज गया। जोर-जोर से रोने लगी। कहने लगी,-‘तुम्हें पता है, मैंने किस तरह से ७ साल गुजारे हैं लोगों के ताने सुन-सुन कर। सरला रोए जा रही थी। अब कभी छोड़कर मत जाना मुझे शेखर, वरना मैं मर जाऊंगी।’
सरला शेखर के पैरों में गिर पड़ी थी। शेखर ने सरला को उठा कर सीने से लगा लिया, और दोनों एक-दूसरे का हाथ पकड़े हुए अन्दर चले गए। कमला ये सब देख रही थी। उसकी आँखों में खुशी के आँसू छलक रहे थे।

परिचय- ताराचंद वर्मा का निवास अलवर (राजस्थान) में है। साहित्यिक क्षेत्र में ‘डाबला’ उपनाम से प्रसिद्ध श्री वर्मा पेशे से शिक्षक हैं। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में कहानी,कविताएं एवं आलेख प्रकाशित हो चुके हैं। आप सतत लेखन में सक्रिय हैं।

Leave a Reply