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गाँवों को शहर खा गया

शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान) 
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उजड़ रहे हैं गाँव बिचारे
शहर खा गया गाँवों को,
ऐसा लगता अपने हाथों
काट रहा खुद पाँवों को।

और बहुत की चाहत में
खेती करना छोड़ दिया,
बहुत कमायेंगे शहरों में,
कहकर गाँव छोड़ दिया।

मेहनत से रिश्ता तोड़ा,
शहरों से नाता जोड़ा है,
खून-पसीने से जो मिलता
कहते हैं ये थोड़ा है।

मिट्टी के घर सब भूल गये,
शहरों की बिल्डिंग भाती है,
भूल गये मजदूरों से ही
ये बिल्डिंग बन पाती है।

मजदूर गाँव में रह कर ही
वो अपना खून जलाता है,
धनवानों के महल खड़े,
करके दो रोटी पाता है।

मिलों-कारखानों ने भोले,
लोगों को भरमाया है,
गाँवों से छुड़वा कर उनको
सुंदर स्वप्न दिखाया है।

दूध-दही असली शहरों में,
सपने में नहीं मिलता है,
देसी घी के नाम शहर में,
केमिकल का घी मिलता है।

भाई-चारा मेल-जोल सब
ही गाँवों में मिलता है,
और शहर में यार-दोस्त भी,
आस्तीन में पलता है।

शहरों में वो बात कहाँ है,
जो गाँवों में होती है,
शहरों में नल का पानी,
गाँव में नदियाँ बहती हैं।

लोभ-कमाई में आकर के,
गाँव छोड़ कर शहर गये,
मजदूरी का काम मिला,
घर से बे-घरबार हुए।

देखे देख कर पछताते हैं,
महँगाई के भावों कोl
हाल बुरा हो गया गाँव का,
शहर खा गये गाँवों कोll

परिचय-शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है।

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