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छत्तीसगढ़ सरकार का विवेकहीन निर्णय

डॉ.अरविन्द जैन
भोपाल(मध्यप्रदेश)
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भारत देश में औसतन कोई भी व्यक्ति अधिक पौष्टिक नहीं है।अधिकांश कुपोषण से पीड़ित हैं,कारण सामान्य वर्ग को संतुलित आहार नहीं मिलता और निम्न एवं गरीबों को जब पर्याप्त भोजन नहीं मिलता तो वे कुपोषण की श्रेणी में आते हैं। सभी सरकारों का लक्ष्य है कि कुपोषण से कोई पीड़ित न हो,कारण कुपोषण के कारण शरीर में प्रतिरोधक क्षमता न होने से रोगग्रस्त शीघ्र होते हैं,और शीघ्र मृत्यु के शिकार होते हैं। यह स्थिति जन्म के समय से शुरू होती है,और पांच वर्ष के पहले पहले बहुत बालक-बालिकाएं मर जाते हैं या बीमार रहते हैं। इसी समय उन्हें पर्याप्त पोषण की जरुरत होती है,जो उनके घरों में उपलब्ध न होने पर सरकार लोक कल्याणकारी होने से अलग-अलग प्रकार का पोषण आहार शालाओं में देती है। यह अच्छी पहल है,पर सरकार अपना लक्ष्य प्राप्त करने के लिए कोई भी विवेकहीन निर्णय ले लेती है,जिसका नमूना अंडे को पोषण के बाबद प्रोटीन का अच्छा स्रोत बताना या मानना बहुत बड़ी भूल है। अंडा हृदय रोग को सीधा निमंत्रण है। अंडा एक प्रकार से जहर ही है,अंडा यानी अन्य असाध्य रोगों का आमंत्रण है। इसको ठन्डे दिमाग से समझकर फिर विचार करें कि यह खाना चाहिए या नहीं ?
पहली बात हम अंडा क्यों देना चाहते हैं,प्रोटीन की कमी या पोषण के लिए ? १०० ग्राम अंडे में प्रोटीन १४.३ ग्राम होता है,एक अंडे का वजन २५ ग्राम होता है तो ४० अंडे खाने से १०० ग्राम प्रोटीन मिलेगा। १ अंडे की कीमत यदि ५ रुपये है तो ४० की कीमत २०० रुपये होगी,और उससे १४.३ ग्राम प्रोटीन मिलेगा,जिससे आपको हृदय रोग,किडनी रोग,त्वक रोग और आप मांसाहारी बनने जा रहे हैं। उसके विपरीत यदि आप सोयाबीन, मूंगफली और चने का प्रयोग करेंगे तो आपको सस्ते और पूर्ण आहार के साथ शाकाहारी और सात्विक आहार मिलेगा। इसको भी समझना जरुरी है। १०० ग्राम सोयाबीन में ४५.५ ग्राम प्रोटीन और लागत ५ रुपये,१०० ग्राम मूंगफली में ३२.५ ग्राम प्रोटीन और लागत १५ रुपये अधिकतम,एवं १०० ग्राम चना में २३.५ ग्राम प्रोटीन और लागत १५ रुपये अधिकतम है। इस प्रकार ३०० ग्राम में १०० ग्राम प्रोटीन मात्र ३५ रुपये में मिलेगा,जो सात्विक के साथ पौष्टिक भी होगा,और पूर्णतः शाकाहारी एवं हानिरहित।
ये विचारणीय बात है कि अंडे का उत्पादन काम वासना से होता है, जिससे तामसिक प्रवत्ति होने से तामसिक बुद्धि और भाव पैदा होते हैं जो भविष्य में हिंसा वृत्ति को आमंत्रित करती है। यदि हम शुरू से उन बालक बालिकाओं को पोषण आहार के रूप में अंडा या मांसाहार देंगे तो उनका भविष्य शांतिकारक नहीं होगा।
इसीलिए सरकार को अंडों का वितरण तुरंत बंद करना चाहिए। उसकी जगह हमारे पास अनेक विकल्प हैं,जिनके उपयोग से हम कुपोषण समाप्त कर सकते हैं,बशर्ते इस कार्यक्रम में पूर्ण ईमानदारी होना चाहिए। मुख्यमंत्री,मंत्री,सचिव,संचालक, जिला अधिकारी और ठेकेदार का इस पर क्या ध्यान कि अंडा कब का,किस तारीख का किस हालत में प्रदाय किया जा रहा है,और उसकी विषाक्तता से मौत ही होगी। भारतवर्ष अहिंसाप्रधान देश है,तो इसमें सरकार की ओर से क्यों बढ़ावा दिया जा रहा है। जिसको जो खाना है,वह उसकी स्वतंत्रता है,पर छत्तीसगढ़ में सरकारी स्तर पर इस प्रकार का बढ़ावा देना कानूनन अपराध के साथ जन सामान्य के साथ धोखा और गलत आहार को बढ़ावा देना है।

परिचय- डॉ.अरविन्द जैन का जन्म १४ मार्च १९५१ को हुआ है। वर्तमान में आप होशंगाबाद रोड भोपाल में रहते हैं। मध्यप्रदेश के राजाओं वाले शहर भोपाल निवासी डॉ.जैन की शिक्षा बीएएमएस(स्वर्ण पदक ) एम.ए.एम.एस. है। कार्य क्षेत्र में आप सेवानिवृत्त उप संचालक(आयुर्वेद)हैं। सामाजिक गतिविधियों में शाकाहार परिषद् के वर्ष १९८५ से संस्थापक हैं। साथ ही एनआईएमए और हिंदी भवन,हिंदी साहित्य अकादमी सहित कई संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आपकी लेखन विधा-उपन्यास, स्तम्भ तथा लेख की है। प्रकाशन में आपके खाते में-आनंद,कही अनकही,चार इमली,चौपाल तथा चतुर्भुज आदि हैं। बतौर पुरस्कार लगभग १२ सम्मान-तुलसी साहित्य अकादमी,श्री अम्बिकाप्रसाद दिव्य,वरिष्ठ साहित्कार,उत्कृष्ट चिकित्सक,पूर्वोत्तर साहित्य अकादमी आदि हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-अपनी अभिव्यक्ति द्वारा सामाजिक चेतना लाना और आत्म संतुष्टि है।

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