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जन-जन की रक्षा करते भगवान शिव

ललित गर्ग

दिल्ली
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मेघ, सावन और ईश्वर …

सावण मास को मासोत्तम मास कहा जाता है। सावण मास अपना एक विशिष्ट महत्व रखता है। यह माह अपने हर एक दिन में एक नया सवेरा दिखाता है। इसके साथ जुडे़ समस्त दिन धार्मिक रंग और आस्था में डूबे होते हैं। इस माह की प्रत्येक तिथि किसी न किसी धार्मिक महत्व के साथ जुड़ी हुई होती है। श्रवण नक्षत्र तथा सोमवार से भगवान शिव शंकर का गहरा संबंध है। धर्म और आस्था का अटूट गठजोड़ हमें इस माह में दिखाई देता है। इसका हर दिन व्रत और पूजा पाठ के लिए महत्वपूर्ण है। देवों के देव शिव की भक्ति के लिए सावण मास का विशेष महत्व है। शास्त्रों में वर्णित है कि, सावन महीने में भगवान विष्णु योगनिद्रा में चले जाते हैं। इसलिए यह समय भक्तों और साधु-संतों सभी के लिए अमूल्य होता है। इस समय सृष्टि के संचालन का उत्तरदायित्व भगवान शिव ग्रहण करते हैं। इसलिए सावन के प्रधान देवता भगवान शिव बन जाते हैं और वे समाज उपेक्षितों, भक्तों एवं पीड़ितों की सहायता करते है। मनीषियों का कहना है कि, समुद्र मंथन भी श्रावन मास में ही हुआ। इस मंथन से १४ प्रकार के तत्व निकले। इसके बाद से ही शिव भक्त सावण मास में भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं। ज्योतिर्लिंगों का दर्शन एवं जलाभिषेक करने से अश्वमेघ यज्ञ के समान फल प्राप्त होते हैं तथा शिवलोक की प्राप्ति होती है, ऐसी मान्यता है। इन दिनों में अनेक प्रकार से शिवलिंग का अभिषेक किया जाता है जो भिन्न-भिन्न फलों को प्रदान करने वाला होता है। जैसे जल से वर्षा और शीतलता की प्राप्ति होती है। दुग्ध एवं घृत से अभिषेक करने पर योग्य संतान की प्राप्ति होती है। ईख के रस से धन-संपदा की प्राप्ति होती है। कुशोदक से समस्त व्याधि शांत होती है। दधि से पशु धन की और शहद से अभिषेक करने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।
इसके अतिरिक्त एक अन्य कथा के अनुसार, मरकंडू ऋषि के पुत्र मारकण्डेय ने लंबी आयु के लिए सावन माह में ही घोर तप कर शिव की कृपा प्राप्त की थी, जिससे मिली मंत्र शक्तियों के सामने मृत्यु के देवता यमराज भी नतमस्तक हो गए थे। इस महीनें में गायत्री मंत्र, महामृत्युंजय मंत्र, पंचाक्षर मंत्र इत्यादि शिव मंत्रों का जाप शुभ फलों में वृद्धि करने वाला होता है और जीवन रक्षक माना गया है। भगवान शिव को सावन का महीना प्रिय होने का एक अन्य कारण यह भी है कि, भगवान शिव सावन के महीने में पृथ्वी पर अवतरित होकर अपनी ससुराल गए थे और वहाँ उनका स्वागत आर्घ्य और जलाभिषेक से किया गया था। माना जाता है कि प्रत्येक वर्ष सावन माह में भगवान शिव अपनी ससुराल आते हैं। भू-लोक वासियों के लिए शिव कृपा पाने का यह उत्तम समय होता है।
भगवान शिवशंकर करोड़ों सूर्य के समान दीप्तिमान हैं, जिनके ललाट पर चन्द्रमा शोभायमान है। नीले कण्ठ वाले अभीष्ट वस्तुओं को देने वाले हैं। ३ नेत्रों वाले यह शिव, काल के भी काल महाकाल हैं। कमल के समान सुन्दर नयनों वाले अक्षमाला और त्रिशूल धारण करने वाले अक्षर-पुरुष हैं। यदि क्रोधित हो जाएं तो त्रिलोक को भस्म करने की शक्ति रखते हैं और दया कर दें तो त्रिलोक का स्वामी भी बना सकते हैं। यह भयावह भव सागर पार कराने वाले समर्थ प्रभु हैं। भोले नाथ बहुत ही सरल स्वभाव, सर्वव्यापी और भक्तों से शीध्र ही प्रसन्न होने वाले देव हैं। उनके सामने मानव क्या दानव भी वरदान मांगने आये तो उसे भी मुँह मांगा वरदान देने में वे पीछे नहीं हटते हैं।
भगवान शिव के प्रति जन-जन की भक्ति और निष्ठा, उनका समर्पण और उनकी स्तुति अनायास नहीं है, बल्कि भक्तों ने शिव की भक्ति में वह सब कुछ पाया है, जो उन्होंने चाहा है। वस्तुतः, अपने विरोधियों एवं शत्रुओं को मित्रवत बना लेना ही सच्ची शिवभक्ति है। जिन्हें समाज तिरस्कृत करता है, उन्हें शिव गले लगाते हैं। तभी तो भक्त भगवान शिव की शरण आकर निश्चिंत हो जाता है, तभी तो अछूत सर्प उनके गले का हार है। शिव सच्चे पतित पावन हैं। ऐसे पालक रुद्रदेव की शरण में भक्त स्वयं को निश्चिंत, सुखी, समृद्ध महसूस करता है।
हर व्यक्ति शिव की स्तुति एवं भक्ति करते हुए अपने जीवन को सार्थक मानता है, क्योंकि भगवान शिव अपने भक्तों को बहुत फल देने वाले हैं, उनकी हर मनोकामना को पूरा करने वाले हैं। वे शिव हम सबका कल्याण करते और हमारी जीवन सृष्टि को उन्नत एवं खुशहाल बनाते हैं।

भगवान शिव इस संसार के पालनहार हैं, उनके एक हाथ में वर, दूसरे में अभय, तीसरे में अमृत कलश और चौथे में त्रिशूल है। आपकी कृपा चाहने वाले कोई भक्त आपके ‘वर’ के पात्र बनें, कोई भक्त ‘अभय’ के पात्र बनें और कोई हाथ में स्थित घनीभूत ‘अमृत’ के पात्र बनें और ऐसी पात्रता हर शिव भक्त में उमड़े और शिव भक्ति का एक प्रवाह संपूर्ण संसार में प्रवहमान बने, यही इस संसार और सृष्टि का उन्नयन और उत्थान कर सकती है। भगवान शिव जन-जन की रक्षा करते हैं, भक्तों की रक्षा करते हैं। मान्यता है कि भगवान शिव अपने भक्तों की भक्ति को बहुत मान देते हैं।