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जब मुकरता है…

सरफ़राज़ हुसैन ‘फ़राज़’
मुरादाबाद (उत्तरप्रदेश) 
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कोई वादे से जब मुकरता है।
दिल पे तूफ़ान-सा गुज़रता है।

दिल मचलता है आह भरता है।
जब वो नज़रों से वार करता है।

सिर्फ़ कहते हैं लोग मरने को,
अब मुह़ब्बत में कौन मरता है।

नाज़ होता है उसकी क़िस्मत पर,
जो यहाँ डूब कर उभरता है।

वो है किरदार का धनी जग में,
दिल गुनाहों से जिसका डरता है।

मेरे दिल की ह़सीन वादी में,
कोई चुपके से पाँव धरता है।

हम ‘फ़राज़’ उससे दूर रहते हैं,
जो बग़ावत की बात करता है॥

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