राधा गोयल
नई दिल्ली
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सावन का मतवाला मौसम झूले पड़ गए बागों में,
डाल हाथ में हाथ पिया, चल झूमें मस्त बहारों में।
डाल-डाल पर बैठे पंछी मधुर रागिनी गाते हैं,
सावन की मदमस्त हवा से पात-पात इतराते हैं।
नन्हीं-नन्हीं सी बूँदें पत्तों पर आन थिरकती हैं,
मोर नाचने लगते, कोयल गाना गाने लगती है।
मैके से सिंधारा आया, चूड़ी, गजरा, मेंहदी भी,
साज और श्रृंगार का सब सामान, साथ में साड़ी भी।
सासू जी की तीयल (साड़ी) आई, वो भी मन में हुलस रहीं,
बागों में पड़ गए हैं झूले, कजरी गा सब झूल रहीं।
कभी झूलते साजन, उनको सजनी पींग दिलाती है,
जब साजन पींगे दे, सजनी मन ही मन हर्षाती है।
पिया लाए थे गजरा, उससे केशों का श्रृंगार किया,
हिना लगाकर कोहनी तक, सबने हाथों को सजा लिया।
सखी-सहेली झूम-झूम कर सावन गीत सुनाती हैं,
मेंहदी चूड़ी सजे हाथ, इक-दूजे को दिखलाती हैं।
सावन की मदमस्त फुहारें मतवाला कर जाती हैं,
सावन की ऋतु त्रस्त धरा को, कुछ शीतल कर जाती है।
अंग-अंग निखरा धरती का, मौसम है त्यौहारों का,
झूले पड़ गए हैं बागों में, मौसम मस्त बहारों का॥