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दिल से देता हूँ वोट..

जसवंतलाल खटीक
राजसमन्द(राजस्थान)
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मैं सबको सुनाता हूँ लेकिन,मैं हूँ बहरा
किसी की नहीं सुनता मैं ये,आज कह रहा।
मैं दिल से देता हूँ वोट,पैसों से नहीं,
मेरा वोट है मेरा हक,शान से कह रहा॥

ये चुनावी हथकंडे हैं,ये तो रोज आएंगे,
ये हाथों को जोड़ कर,हमारे पाँव दबाएंगे।
इन लोगों की बातों में,तुम कभी ना आना,
ये हाथ जोड़ने वाले फिर,हमको दबाएंगे॥

राजनीति के ये चोंचले हैं,सम्भल जाओ तुम,
मीठे-मीठे हैं बोल इनके,सम्भल जाओ तुम।
ये आज बोल रहे,कल चुप्पी साधेंगे,
ये राजनीतिक जुमला है,सम्भल जाओ तुम॥

काका,दादा और भैया,तुम्हें कह के बुलाये,
चन्द पैसों का लालच दे के,तुम्हें पास बुलाये।
पलभर में बदल देते हैं ये,अपना यह रुप,
एक साइन करने के लिए,रोज दफ्तर बुलाये॥

इनका कोई सगा नहीं,कोई दोस्त नहीं है,
बस पैसे के भूखे हैं,सिर्फ होश यही है।
इनको नहीं मतलब तुमसे,जीत जाए तो,
ये चुनावी गिरगिट है,इनका दोष नहीं है॥

वोट पर है अधिकार,देना तोल-मोल के,
गलती से भी ना देना,कभी बोतल खोल के।
एक वोट तुम्हारा बनाता है,अच्छी सरकार,
फिर पांच साल तक,जीना दिल खोल के॥

सफेद-कुर्ते वाले रोज,मिल ही जाते हैं,
राजनीति के दाव-पेंच,लड़ ही जाते हैं।
इन सबका नुकसान,आम आदमी भरे,
ये राजनेता रोज नए,पकवान खाते हैं॥

‘जसवंत’ कहे,राजनीति बुरी नहीं है,
इन नेता की ईमानदारी,पूरी नहीं है।
स्वच्छ राजनीति अपना ले तो,बात ओर बने,
सोने की चिड़िया बने भारत,दूरी नहीं है॥

परिचय-जसवंतलाल बोलीवाल (खटीक) की शिक्षा बी.टेक.(सी.एस.)है। आपका व्यवसाय किराना दुकान है। निवास गाँव-रतना का गुड़ा(जिला-राजसमन्द, राजस्थान)में है। काव्य गोष्ठी मंच-राजसमन्द से जुड़े हुए श्री खटीक पेशे से सॉफ्टवेयर अभियंता होकर कुछ साल तक उदयपुर में निजी संस्थान में सूचना तकनीकी प्रबंधक के पद पर कार्यरत रहे हैं। कुछ समय पहले ही आपने शौक से लेखन शुरू किया,और अब तक ६५ से ज्यादा कविता लिख ली हैं। हिंदी और राजस्थानी भाषा में रचनाएँ लिखते हैं। समसामयिक और वर्तमान परिस्थियों पर लिखने का शौक है। समय-समय पर समाजसेवा के अंतर्गत विद्यालय में बच्चों की मदद करता रहते हैं। इनकी रचनाएं कई पत्र-पत्रिकाओं में छपी हैं।

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