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दीपावली:उपहार का आदान-प्रदान कितना उचित ?

राधा गोयल
नई दिल्ली
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रोशनी से जिंदगी….

हम इस त्यौहार पर अपने घर की रंगाई- पुताई करते हैं। इस बहाने घर से फालतू सामान भी निकल जाता है और घर में कोने में जो कीटाणु वगैरह जमा हो जाते हैं, वे भी नष्ट हो जाते हैं।
दीपावली बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है और यह त्यौहार हमें याद दिलाता है कि कैसे प्रकाश अंधकार को दूर करता है।
रोशनी का त्यौहार अपने साथ अच्छा माहौल, अच्छा भोजन और कल्याण की भावना लेकर आता है।
दीपोत्सव का वर्णन प्राचीन ग्रंथों में मिलता है। इस पर्व का अपना ऐतिहासिक व धार्मिक महत्व भी है, जिस कारण यह त्यौहार किसी खास समूह का न होकर संपूर्ण राष्ट्र का हो गया है।
धर्म की दृष्टि से भी दीपावली से जुड़े धार्मिक तथ्य हैं, जिसमें त्रेतायुग में भगवान राम जब रावण को हराकर अयोध्या वापस लौटे, तब उनके आगमन पर दीप जलाकर उनका स्वागत किया गया और खुशियाँ मनाई गईं।
तात्पर्य यह कि यह त्यौहार खुशियों का त्यौहार है। खुशियाँ अकेले नहीं मनाई जातीं, मिल-जुल कर ही मनाई जाती हैं। पहले के लोग घर में हर पर्व पर मिष्ठान्न व ढेरों नमकीन बनाते थे, फिर चाहे वह होली हो अथवा दीपावली। दीपावली पर दीपक विशेष रुप से जलाए जाते हैं। सबके घर दीपों से जगमग होते हैं, मानो अमावस्या की काली रात को मुँह चिढ़ा रहे हों। चाँद को धता बता रहे हों कि तू नहीं निकलेगा तो ऐसा नहीं है कि धरती पर प्रकाश नहीं होगा। हम छोटे से असंख्य दीप मिलकर इस घोर तिमिर का नाश कर देंगे। हमारे युग निर्माता कृष्ण का जन्म भी तो घोर अमावस्या की रात्रि में हुआ था, जिन्होंने विश्व को एक नई दृष्टि प्रदान की।
दीपावली पर हमारे भारत में ही नहीं, अपितु विश्व के सभी देशों में जहाँ भारतीय बसते हैं, बहुत जोर-शोर से दीपावली मनाई जाती है।
इस दिन ढेरों पकवान बनाए जाते हैं। पहले तो आस-पड़ोस में भी इनका आदान-प्रदान होता था। बदलते परिवेश में बाजार से उपहार पैक आने लगे और इनका आदान-प्रदान शुरू हो गया। वैसे हमारे देश में आज भी हर त्यौहार पर बहन-बेटियों को उपहार स्वरूप जरूर कुछ ना कुछ भेजा जाता है। दीपावली पर दीपमाला का सौन्दर्य देखते ही बनता है। फुलझड़ियाँ जलाकर और आतिशबाजी जलाकर अपनी खुशी प्रकट करते हैं।
अब बात यह कि ‘दीपावली पर उपहारों का आदान-प्रदान कितना उचित ?’ जहाँ यह आदान-प्रदान मजबूरी बन जाए तो, अनुचित है। वैसे तो यह अपनी खुशियाँ प्रकट करने का एक माध्यम है, इसलिए दिवाली पर उपहारों का आदान-प्रदान मेरे हिसाब से तो उचित ही है। यह बात अलग है कि, कुछ लोग अपने घर में बेकार पड़ी वस्तुओं को उपहार स्वरूप दे देते हैं, जो गलत है। मेरा मानना है कि हमें दीपावली से एक दिन पहले वृद्ध आश्रम में जाकर वहाँ दीए, रोली, रुई, लक्ष्मी- गणेश जी की मूर्ति, सरसों का तेल, थाल, माचिस, मोमबत्तियाँ, खील-बताशे, हार-फूल देकर आना चाहिए, ताकि वो भी दीवाली मना सकें। कुछ गर्म कपड़े बांटकर आने चाहिए। उनकी आवश्यकता पूछनी चाहिए, ताकि वह अपना खाली समय व्यतीत कर सकें। कई को ढोलक बजानी बड़ी अच्छी आती है, एक ढोलक भी भेंट की जा सकती है, ताकि वे समय व्यतीत कर सकें। मिष्ठान्न और फल-वगैरह भी वितरित करने चाहिए। कच्चा सामान भी साथ में लेकर जाना चाहिए, ताकि वे अपनी इच्छानुसार कुछ बना सकें। कई वृद्धाओं को अचार डालना बड़ा अच्छा आता है। जरूरत है कि हम उनकी इन जरूरतों को समझें।
अपने परिजनों में भी उपहार बाँटना मैं अनुचित नहीं समझती, बशर्ते कि उपहार ऐसा हो जो किसी के काम आ सके। अपने घर में काम करने वाली सहायिका, गाड़ी साफ करने वाला, चौकीदार, पोस्टमैन, कोरियर वाला, हमारे घर से कचरा लेकर जाने वाला, गली में झाड़ू लगाने वाला, इन सबको भी उपहार स्वरूप कुछ देना चाहिए। नकद राशि दी जाएगी तो ये ज्यादा खुश होते हैं। यदि आपको यह पता लग जाए कि, उन्हें किसी चीज की बहुत जरूरत है तो उपहार स्वरूप दी जा सकती है।
एक बार मेरी एक कामवाली… जो गाँव से आई थी…उसके पास गृहस्थी का कुछ खास सामान नहीं था। मेरे पास २ स्टोव्ह रखे थे, तो उसकी जरूरत को समझते हुए उसे १ स्टोव्ह व कुछ बर्तन दिए। वो उस समय साड़ी पहनती थी। अपनी २ साड़ियाँ दीं। आजकल तो खैर इन सबके पास इतना अधिक सामान होता है और लोग केवल २ महीने इस्तेमाल किए हुए कपड़े इन्हें दे देते हैं। इन लोगों ने और उनके बच्चों ने हमसे अधिक अच्छे कपड़े पहने होते हैं। अतः उपहार स्वरूप इन्हें नकद रुपए देना ही ज्यादा उचित है।


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