डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)
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दो हजार फिर बंद है, मचा देश भूचाल।
दहशत में चोरी जगत, नेता फिर बेहाल॥
दो हजार का नोट भी, हुआ आज से बंद।
लूट घूस फिर शोक में, नेता खुशियाँ मंद॥
दो हजार के बाद क्या, होगा यह फिर प्रश्न।
ख़फ़ा कुबेरी सल्तनत, जनसाधारण जश्न॥
दो हजार प्रतिबंध से, जमाख़ोर भूचाल।
पकड़ी जाएगी रकम, होंगे फिर बदहाल॥
गज़ब नीति सरकार की, अज़ब नोट का खेल।
अदला-बदली नोट की, बैंकों ठेलम-ठेल॥
दीन-हीन जन घर कहाँ, दो हजार का नोट।
कामगार उद्यम निरत, अधिकारी बस वोट॥
दो हजार की गड्डियाँ, कहँ नसीब दीनार्त।
गरीब बहुसंख्यक वतन, जठरानल से आर्त॥
मचा तहलका देश में, जो हैं रिश्वतखोर।
लूटे जनधन कोष को, दो हजार जो चोर॥
समझदार सरकार यह, भांप नोट बाजार।
दो हजार की रोक से, शोक मग्न व्यापार॥
आम लोग खुश हैं वतन, सुन निर्णय सरकार।
फिर लगाम हो लूट पर, जनहित पर उपकार॥
दूर चलन से हो रहा, रंग गुलाबी नोट।
फ़र्क नहीं मजदूर पर, घूस गबन पर चोट॥
कवि ‘निकुंज’ विस्मित नहीं, दो हजार प्रतिबन्ध ।
सोच-समझ रणनीति से, रुके गबन दुर्गंध॥
परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥