ममता तिवारी ‘ममता’
जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)
*******************************************
लगी पक्षियों की चौपाल।
चटक-मटक है सबकी चाल॥
पंख सभी के रंग-बिरंग,
कभी न करना इनको तंग।
किसके कैसे होते पंख,
चलो देखते हैं मिल संग।
इंन्द्रधनुषी फैला जाल…
नाच रहे सब दे कर ताल।
चटक-मटक है सबकी चाल…॥
छपी हुई है सुंदर छाप,
पक्षी बडा मयूर हो आप।
राम नाम का करता जाप,
तोता हरा बोलता नाप।
काला कत्था बटेर बाल…
पपीहे का मत पूछ हाल।
चटक-मटक है सबकी चाल…॥
उज्जवल सादा दिखता हंस,
बतख में भरा जिसका अंश।
भूरी गौरैया का दंश,
कम हो रही बचा लो वंश।
काली मैना सफेद गाल…
सारस श्वेत कठफोड़ लाल।
चटक-मटक है सबकी चाल…॥
बुलबुल पीली-पीली चंट,
नीले पंख का नीलकंठ।
लाल कलगी लाल घंट,
मुर्गे का यह देख घमंड।
कोयल काली बोल कमाल…
काला कौआ बैठा डाल।
चटक-मटक है सबकी चाल…॥
परिचय-ममता तिवारी का जन्म १ अक्टूबर १९६८ को हुआ है और जांजगीर-चाम्पा (छग) में निवासरत हैं। हिन्दी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती ममता तिवारी ‘ममता’ एम.ए. तक शिक्षित होकर ब्राम्हण समाज में जिलाध्यक्ष हैं। इनकी लेखन विधा-काव्य (कविता, छंद, ग़ज़ल) है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में नित्य आपकी रचनाएँ प्रकाशित होती हैं। पुरस्कार की बात की जाए तो विभिन्न संस्था-संस्थानों से आपने ४०० प्रशंसा-पत्र आदि हासिल किए हैं।आपके नाम प्रकाशित ६ एकल संग्रह-वीरानों के बागबां, साँस-साँस पर पहरे, अंजुरी भर समुंदर, कलयुग, निशिगंधा, शेफालिका, नील-नलीनी हैं तो ४५ साझा संग्रह में सहभागिता है। स्वैच्छिक सेवानिवृत्त शिक्षिका श्रीमती तिवारी की लेखनी का उद्देश्य समय का सदुपयोग और लेखन शौक को पूरा करना है।