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बचपन

बाबूलाल शर्मा
सिकंदरा(राजस्थान)
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विश्व बाल दिवस स्पर्धा विशेष………..


बाल दिवस पर विश्व में,
हों जलसे भरपूर।
बच्चों का अधिकार है,
बचपन क्यों हो दूर॥

कवि,ऐसा साहित्य रच,
बचपन हो साकार।
हर बालक को मिल सके,
मूलभूत अधिकार॥

बाल श्रमिक,भिक्षुक बने,
बँधुआ सम मजदूर।
उनके हक की बात हो,
जो बालक मजबूर॥

दर्द न जाने कोय…बाल भिक्षु /विधाता छंद मुक्तक 

झुकी पलकें निहारें ये,
रुपैये को प्रदाता को।
जुबानें बन्द दोनों की,
करें यों याद माता को।
अनाथों ने,भिखारी ने,
तुम्हारा क्या बिगाड़ा है,
दया आती नहीं देखो,
निठुर देवों विधाता को।

बना लाचार जीवन को,
अकेला छोड़ कर इनको।
गये माँ-बाप जाने क्यों,
गरीबी खा गई जिनको।
सुने अब कौन जो सोचें,
पढाई या ठिकाने की,
मिला खैरात ही जीवन,
गुजर खैरात से तन को।

गरीबी मार ऐसी है,
कि जो मरने नहीं देती।
‘बिचारा’ मान देती है,
परीक्षा सख्त है लेती।
निवाले कीमती लगते,
रुपैया चाक के जैसा,
विधाता के बने लेखे,
करें ये भीख की खेती।

अनाथों को अभावों का,
सही यों साथ मिल जाता।
विधाता से गरीबी का,
महा वरदान जो पाता।
निगाहें ढूँढती रहती,
कहीं दातार मिल जाए,
व्यथा को आज मैं उनकी,
सरे…बाजार हूँ गाता।

किये क्या कर्म हैं ऐसे,
सहे फल ये बिना बातें।
न दिन को ठौर मिलती है,
नही बीतें सुखी रातें।
धरा ही मात है इनकी,
पिता आकाश वासी है,
समाजों की उदासीनी,
कहाँ मनुजात जज्बातें।

पिंजरे के पंछी से…बाल मजदूर/लावणी छंद मुक्तक

राज,समाज,परायों अपनों,के कर्मों के मारे हैं!
घर-परिवार से हुये किनारे,फिरते मारे-मारे हैं!
पेट की आग बुझाने निकले, देखो तो ये दीवाने!
बाल भ्रमित मजदूर बेचारे,हार हारकर नित हारे!

यह भाग्य दोष या कर्म लिखे,
. ऐसी कोई बात नहीं!
यह विधना की दी गई हमको,
कोई नव सौगात नहीं!
मानव के गत कृत कर्मों का,
फल बच्चे ये क्यों भुगते!
इससे ज्यादा और शर्म…की,
यारों कोई बात नहीं!

यायावर से कैदी से ये,दीन-हीन से पागल से!
बालश्रमिक मेहनत करते ये,होते मानो घायल से!
पेट भरे न तन ढकता सच,ऐसी क्यों लाचारी है!
खून चूसने वाले इनके,मालिक होते ‘तायल’ से!

ये बेगाने से बेगारी से,ये दास प्रथा अवशेषी है!
इनको आवारा न बोलो,ये जनगणमन संपोषी हैं!
सत्सोचें सच में ही क्या ये,सच में ही सच दोषी है!
या मानव की सोचों की ये,सरेआम मदहोंशी है!

जीने का हक तो दें देवें ,रोटी कपड़े संग मुकाम!
शिक्षासंग प्रशिक्षण देवें,जो दिल वादें अच्छा काम!
आतंकी गुंडे जेलों में,खाते मौज मनाते हैं!
कैदी-खातिर बंद करें ये,धन आजाए इनके काम!
(तायल=गुस्सैल)
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कोई लौटा दे खोया बचपन… बाल श्रमिक/लावणी छंद/

अर्थ-
जो दाता के घर से मानो,भाग्यहीन आ जाते हैं!
ऐसे बचपन भूख के मारे,भूख कमाने जातेे हैं!
जिसने बचपन देखा नहीं है,नहीं हाथ वे रेखा हैं!
चंद्रोदय भी जिसने मानें,जीवन में नहीं देखा है!
जो अपने व गैरों के गत कृत,कर्मों से मजबूर हैं!
जो बच्चे मजबूर हुए हैं,वही बाल मजदूर है!

कारण-
परिवार टूट,लेते तलाक,ये लिव इन शिप का जोर है!
कुछ कारण घोर गरीबी के,या महंगाई का शोर है!
मजबूरी माता..बापों की,धंधा इन्हें कराती है!
सोचें हम सारे दोषी हैं,कुछ राजनीति भरमाती है!

दशा-
ईंट के भट्टे चेजे अड्डे,होटल-ढाबे बात सुनें!
धनवानों के महल सँजोते,वे ही तो कालीन बुनें!
कचरे के ढेरों में देखो,जाने क्या-क्या चुनते हैं!
सेवा भार के बदले देखो,ये तो क्या क्या सुनते हैं!
धन पद बल की करे चाकरी,भिखमंगे से लगते हैं!
रोटी-कपड़ों की चिंता में,भूखे नंगे रहते हैं!

निवारण-
बालश्रमिक के खर्चे शिक्षा,संगी सभी प्रशिक्षण दो,
धर्म,दलों के चंदे रोको, इन बच्चों को रक्षण दो!
इनकी खुशियां लौटाने को,दत्तक कर संरक्षण हो!
जाति भेद भुला कर इनको, जीने को आरक्षण दो!

दोहा-
बाल दिवस पर सब करें,
ऐसा सत संकल्प।
बच्चों को बचपन मिले,
सोचें सत्य विकल्प॥
विकसित मानव सभ्यता,
लगे सहज साकार।
सब देशों में मिल सकें,
बच्चों को अधिकार॥

परिचय : बाबूलाल शर्मा का साहित्यिक उपनाम-बौहरा हैl आपकी जन्मतिथि-१ मई १९६९ तथा जन्म स्थान-सिकन्दरा (दौसा) हैl वर्तमान में सिकन्दरा में ही आपका आशियाना हैl राजस्थान राज्य के सिकन्दरा शहर से रिश्ता रखने वाले श्री शर्मा की शिक्षा-एम.ए. और बी.एड. हैl आपका कार्यक्षेत्र-अध्यापन(राजकीय सेवा) का हैl सामाजिक क्षेत्र में आप `बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ` अभियान एवं सामाजिक सुधार के लिए सक्रिय रहते हैंl लेखन विधा में कविता,कहानी तथा उपन्यास लिखते हैंl शिक्षा एवं साक्षरता के क्षेत्र में आपको पुरस्कृत किया गया हैl आपकी नजर में लेखन का उद्देश्य-विद्यार्थी-बेटियों के हितार्थ,हिन्दी सेवा एवं स्वान्तः सुखायः हैl

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