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आस्था

राजबाला शर्मा ‘दीप’
अजमेर(राजस्थान)
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चौराहे पर चाय की दुकान पर कुछ व्यक्ति बैठे चाय पी रहे थे। पास में शिव मंदिर भी था। कुछ महिलाएं मंदिर में पूजा-अर्चना कर घर लौट रही थीं। उन्हें देखकर चाय की चुस्की लेते एक व्यक्ति ने कहा,-“औरतें भी क्या खूब हैं ? पत्थर के महादेव पर पानी डालकर उसे पूजती रहती हैं।”
दूसरा व्यक्ति बोला,-“अपनी-अपनी आस्था है।”
पहले वाला व्यक्ति वोला,-“पति भी तो परमेश्वर है। क्या उसमें उसे आस्था है।”
यह सब सुनकर एक औरत पलट कर बोली,-“दुर्गा,चंडी,काली आदि देवियों में तुम्हारी आस्था है ?
वह व्यक्ति बोला,-`हाँ है।`
वह औरत बोली,-“पत्नी भी तो देवी है। क्या उसमें तुम्हारी आस्था है ? अगर होती तो राह चलती महिलाओं पर फब्तियां न कसते। दूसरों की छोड़ो,तुम अपनी आस्था में आस्था रखो।”
यह कहकर वह चल दी।

परिचय-राजबाला शर्मा का साहित्यिक उपनाम-दीप है। १४ सितम्बर १९५२ को भरतपुर (राज.)में जन्मीं राजबाला शर्मा का वर्तमान बसेरा अजमेर (राजस्थान)में है। स्थाई रुप से अजमेर निवासी दीप को भाषा ज्ञान-हिंदी एवं बृज का है। कार्यक्षेत्र-गृहिणी का है। इनकी लेखन विधा-कविता,कहानी, गज़ल है। माँ और इंतजार-साझा पुस्तक आपके खाते में है। लेखनी का उद्देश्य-जन जागरण तथा आत्मसंतुष्टि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-शरदचंद्र, प्रेमचंद्र और नागार्जुन हैं। आपके लिए प्रेरणा पुंज-विवेकानंद जी हैं। सबके लिए संदेश-‘सत्यमेव जयते’ का है।

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