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बादल मुझे बना दो राम

राजबाला शर्मा ‘दीप’
अजमेर(राजस्थान)
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विश्व बाल दिवस स्पर्धा विशेष………..


बादल मुझे बना दो राम,
नभ की सैर करा दो राम।

उमड़-घुमड़ कर नीलगगन की,
छाती पर लहराता जाऊं
गोद में भरकर बिजली को मैं,
मन ही मन इतराता जाऊं
दूर-दूर तक चलता जाऊं,
कभी करूं न मैं विश्राम।
बादल मुझे बना दो राम…

हिमगिरी की चोटी को छू लूं
नदियों के संग-संग मैं डोलूं,
बच्चों के मन में भा जाऊं
तृषिन जनों की प्यास बुझाऊं,
बंजर खेतों में मैं बरसूं
यही मेरा नित का हो काम।
बादल मुझे बना दो राम…

भिन्न-भिन्न रंग में रंग जाऊं,
चंहुदिशा हरियाली फैलाऊं
कड़क-कड़क कर कभी डराऊं,
कभी रूई-सा मैं बन जाऊं
यह छोटी अभिलाषा मेरी,
पूरी कर दो तुम घनश्याम।
बादल मुझे बना दो राम…

हाथी,घोड़ा,मेंढक,मछली,
आकृति बन मैं खेल दिखाऊं
लाख पकड़ने की कोशिश में,
फिसल-फिसल हाथों से आऊं
भाग-भाग कर दौड़ लगाऊं,
नहीं मेरा कोई एक हो धामl
बादल मुझे बना दो राम,
नभ की सैर करा दो रामll

परिचय-राजबाला शर्मा का साहित्यिक उपनाम-दीप है। १४ सितम्बर १९५२ को भरतपुर (राज.)में जन्मीं राजबाला शर्मा का वर्तमान बसेरा अजमेर (राजस्थान)में है। स्थाई रुप से अजमेर निवासी दीप को भाषा ज्ञान-हिंदी एवं बृज का है। कार्यक्षेत्र-गृहिणी का है। इनकी लेखन विधा-कविता,कहानी, गज़ल है। माँ और इंतजार-साझा पुस्तक आपके खाते में है। लेखनी का उद्देश्य-जन जागरण तथा आत्मसंतुष्टि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-शरदचंद्र, प्रेमचंद्र और नागार्जुन हैं। आपके लिए प्रेरणा पुंज-विवेकानंद जी हैं। सबके लिए संदेश-‘सत्यमेव जयते’ का है।

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