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बदलता समय और दिनचर्या

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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‘कोरोना’ महामारी का कहर चीन के काले कारनामों से फलित हो धीरे-धीरे समस्त विश्व को अपने आगोश में करीब डेढ़ बर्ष से समेटे आ रहा है। भारत भी इससे अछूता नहीं है। कोरोना का धीरे-धीरे पर फैलाना भारत के बड़े शहरों में शुरू हो गया था। भारत सरकार ने उसे रोकने कै लिए ‘तालाबंदी’ कर दी थी।रोक-टोक कुछ हद तक हुई ही। पूरा भारत प्रदूषण रहित हो गया था। आवागमन, कार्यालय,शिक्षण संस्थान,कल-कारखाने होटल-रेस्तरां,सैलून,रेल-बस-हवाई जहाज सब बन्द। पूरी दिल्ली व देश का मुँह मुख पट्टी से ढँक गए थे। दिन-रात चिकित्सक और परिचारक मंडली समस्त देश में कोरोना की त्रासदी में तन-मन-धन से सेवा कर रहे थे। उनके प्रति कृतज्ञता अर्पणार्थ प्रधानमंत्री ने देशवासियों से दीप या मोमबत्ती जलाने का आह्वान किया था। जनता ने साथ भी दिया। कोरोना का प्रसार दिन-ब-दिन भारत के जन-मन के अन्तस्थल को विदीर्ण करने पर तुला था। पैरासिटामोल की अन्तर्राष्ट्रीय माँग बढ़ गई थी। दूसरी जगह जमाती शैतानों ने विदेशी पर्यटकों और धर्मावलम्बियों को बुलाकर दिल्ली में छिपा कर रखा था। भारत के सभी राज्यों में से कोरोनाग्रसित लोगों को सुदूर क्षेत्र तक भेज दिया था। इससे स्थिति और भी खराब हो गई। वे सबसे मिलते-जुलते रहे,और कोरोना फैलता रहा।
उधर,कामगार प्रतिदिन मजूरी कर अपना भरण-पोषण करने वाला मजदूर वर्ग उत्तरी भारत के दिल्ली,मुम्बई,मद्रास,सूरत,नागपुर,अहमदाबाद व बैंगलोर आदि शहरों से अपने गाँव की ओर लौटने लगा था। स्वार्थी राजनेताओं ने भी उन्हें भड़काना शुरु कर दिया। करोड़ों मजदूरों का जत्था पैदल ही उन शहरों से छोटे-छोटे मासूम रोते-बिलखते बच्चों के साथ सड़कों,रेलपटरियों,नदियों की अनजान राहों से चल दिया। विभिन्न राज्यों की सरकारों ने भी धीरे- धीरे बसों या राहत ट्रेनों से उन फँसे मजदूरों को नियत स्थलों पर पहुँचाना शुरु किया। विचित्र अफ़रा-तफ़री,कोहराम,आशंका,और मौत का तांडव मच गया। लाखों लोग बड़े-छोटे,आम जनता से लेकर अभिनेता,नेता,राष्ट्राध्यक्ष सभी कोरोना की चपेट में आ गए। कितनों ने अपनी ज़ान गँवाई। सैनिटाइजर,मुख पट्टी,किट और कोरोना बिस्तर के निर्माण कल-कारखानों एवं उद्योग-धंधों की बाँछे खिल गई।
भयावह दर्दनाक स्थिति को देखते हुए भारत सरकार ने पुनः ३ सप्ताह के लिए तालाबंदी को बढ़ा दिया। सभी सरकारी कर्मचारियों के वेतन छोड़ सभी सुविधाएँ(चिकित्सा भत्ता आदि)बंद कर दी गई। देश के ८० करोड़ मजदूरों,गरीबों और बेरोजगारों को नवम्बर २०२० तक मुफ्त राशन की सुविधा दे दी गई। शिक्षा व्यवस्था विभिन्न ऑनलाइन माध्यम से चलने लगी। शिक्षकों और छात्र-छात्राओं की स्थिति तालाबंदी काल में बहुत दयनीय हो गई थी,क्योंकि नई-नई अंकीय (डिजिटली) व्यवस्था से नब्बे प्रतिशत आबादी परिचित नहीं थी। शिक्षकों पर कर्तव्यों का ऑनलाइन भार बढ़ गया था। बड़ा कारुणिक भयावह माहौल बन गया था।
बन्द के चलते कुछ समय बाद कोरोना के रोगियों में धीरे-धीरे गिरावट आने लगी। लगा,अब सब-कुछ देश-काल व मानवीय जीवन पुनः पटरी पर लौटने लगा है। सब अपने-अपने कार्यालय जाने लगे। बच्चों के विद्यालय में आगमन शुरु हो गया। चुनावी राजनीति सभा उफान मारने लगी। मुखपट्टी,दूरी और स्वच्छता विलुप्त होने लगी। उधर, टीके भी बन गए। उम्रदराजों को टीका लगने लगा। फिर जीवन सामान्य होने लगा,किन्तु कोरोना मानवीय असावधानी और भौतिक लिप्सा से आहत हो पुनः दूसरी लहर का रूप ले फिर काल बन विश्व के अन्य देशों के साथ भारत में अपना पैर फैलाने लगा है। इतना भयानक ताण्डव कि भारत में प्रतिदिन ४ लाख से ऊपर कोराना ग्रसित रोगी आने लगे। प्राणवायु,जाँच किट्स,बिस्तर और टीके आदि की किल्लतें आने लगी है। लोग काल कवलित होने लगे हैं। श्मशानों,कब्रगाहों नदियों के किनारे लाशों के ढेर प्रतिदिन अपनी-अपनी यात्रा में कंधे बिना बेगाने बन सिसक रहे हैं। चारों ओर त्राहि-त्राहि मची हुई है। नदियों में लावारिस लाशें तैर रही हैं, संवेदना कराह रही हैं और बेशर्म शैतानी हिलोरे मार रही हैं। सभी शिक्षण संस्थान पुनः बंद हैं। ऑनलाइन शैक्षणिक पठन-पाठन,सर्वकारी कार्यक्रम, न्यायालय,उद्योग जगत,लेखन,सम्मेलन,सम्मान सभी अंकीय बन तराने भरने लगे हैं। भारत के राज्यों की सरकारें तालाबंदी के साए में पुनः जीने लगी हैं। यायायात साधन बंद होने लगे हैं।
इस बार यह कोरोना नेता,जनता किसी के प्रति रहमदिल नहीं है। अपने को जब तक लोग सुरक्षित देखते हैं,सशंकित मन खुश हो रहे हैं। सब पुनः ऑनलाइन खरीददारी,मतलब दो का चार में कर अपनी दिनचर्या चला रहे हैं। अपनों से कतरा रहे हैं और कोरोना की तीसरी लहर से भयभीत हो बचने का उपाय सोच रहे हैं। ऐसा हाहाकार,कोहराम और मौत का दर्दनाक भयावह रूप मानव जाति के महाविनाश को दिग्दर्शित कर रहा है।

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥

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