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मिलन के पर्व दीपावली का आध्यात्मिक महत्व

राजेश पुरोहित
झालावाड़(राजस्थान)
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कार्तिक मास की अमावस्या को हम प्रतिवर्ष दीपावली का त्योहार मनाते हैं। भगवान श्री रामचन्द्र जी चौदह वर्ष के वनवास के बाद वापस इसी दिन अयोध्या लौटे थे। इसी खुशी से अयोध्या की प्रजा ने घी के दीप जला कर रोशनी की थी। भगवान के अवध पधारने के लिए उनका स्वागत सत्कार अगवानी की थी।
दीपावली प्रकाश का त्योहार है। व्यक्ति अपने-आप में एक प्रकाश है। लोग इस दिन मिठाइयां बांटते हैं,खुशी मनाते हैं,नये वस्त्र पहनते हैं,सारे दु;ख-दर्द भूल जाते हैं और पटाखे चलाते हैं। धन की देवी लक्ष्मी जी की पूजन करते हैं। ऐश्वर्य,सुख-समृद्धि की कामना करते हैं। इस त्योहार पर बैलों-गायों के साथ पशुधन की पूजा भी की जाती है। आज के दिन बुद्धिमत्ता का प्रकाश सबके भीतर होता है। जीवन का उत्सव लोग खुशी से मनाते हैं। धन और ऐश्वर्य की देवी लक्ष्मी की पूजा कर लोग समृद्धि मांगते हैं। गणेश चेतना के आवेग हैं,जो हमारे सारे विघ्न हर लेते हैं। इसलिए,दीवाली के दिन जप किया जाता है।हमारे भीतर बहुत सारा प्रेम है,शांति है,आनंद है। ये ही हमारी असली दौलत है। यही वास्तविक सम्पति है। मन की शांति व आत्मविश्वास ही सच्ची सम्पत्ति है। जब लहर ये याद रखती है कि,वह समन्दर के साथ जुड़ी है तो उसे विशाल शक्ति मिलती है। अंधकार पर प्रकाश की विजय का पर्व है दीवाली।
इस दिन दिया जलाना,घर की सजावट करना,खरीददारी करना, आतिशबाजी चलाना,पूजा करना,उपहार देना,दावत व मिठाइयां बाँटना आदि कार्य किये जाते हैं।
दीवाली का प्रारम्भ धन तेरस से होता हैl इस दिन लोग धन की पूजा करते है। गहने आभूषण सोने-चांदी-हीरे-जवाहरात की पूजा करते हैं। अगले दिन चौदस को रूप-रंग निखारते हैं। स्त्री-पुरूष सजते संवरते हैं। नये परिधानों में सजते हैं। अगले दिन दीवाली मनाते हैं।दीवाली के २ दिन बाद भाई दूज का त्योहार मनाया जाता है।
दीवाली का सामाजिक-धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थान है।दीपावली को दीपोत्सव भी कहते हैं। तमसो मा ज्योतिर्गमय यानी अंधेरे से ज्योति यानी प्रकाश की ओर जाइए,यह उपनिषदों की आज्ञा है। दीवाली हिन्दू,जैन,बौद्ध,सिख सभी धर्मों के लोग उत्साह से मनाते हैं। बाज़ारों की सजावट देखते ही बनती है। जैन धर्म के मानने वाले इसे ‘मोक्ष दिवस’ के रूप में मनाते हैं। महावीर का मोक्ष दिवस ये इसी दिन मनाते हैं। सिख समुदाय के लोग ‘बन्दी छोड़ दिवस’ के रूप में मनाते हैं।
हम भारतवासी मानते हैं कि सत्य की सदा जीत होती है। असत्य सदा हारता है। झूठ का नाश होता है। असुरों का नाश हुआ,रावण मारा गया और विजातीय प्रवृतियों का अंत हुआ। आज जरूरत है मन के रावण को जलाने की,काम क्रोध लोभ मोह मद को जलाने की और बुराइयों को खत्म करने की।इन बुराइयों पर विजय प्राप्त करना ही वास्तविक युद्ध है। सजातीय प्रवृतियां तभी आती है।
दीवाली से पंद्रह दिन पहले ही लोग घर की सफाई करने लग जाते हैं। घरों को सजाया जाता है। लक्ष्मी का स्वागत करते हैं। दीवाली का पर्व भारत में ही नहीं,श्रीलंका,सिंगापुर, पाकिस्तान थाईलैंड,मलेशिया,आस्ट्रेलिया,
न्यूजीलैंड,संयुक्त अरब अमीरात,इंडोनेशिया,
मारिशस,केन्या,तंजानिया,अफ्रीका,गुयाना ,फिजी सूरीनाम,त्रिनिदाद और अमेरिका आदि में भी हर्षोल्लास से मनाया जाता है।
दीवाली का त्योहार पांच दिनों तक मनाया जाता है। इस दिन लक्ष्मी जी के साथ धन के देवता कुबेर की पूजा की जाती है। घर में रंगोली बनाई जाती है। शुभ मुहूर्त में सोने- चांदी के बर्तन और गहने खरीदे जाते हैं।
दीवाली के चौथे दिन अन्नकूट करते हैं। गोवर्धन की पूजा करते हैं। छप्पन भोग बनाया जाता है। पांचवे दिन बहन भाई को तिलक लगाकर भाई दूज का त्योहार मनाया जाता है। विवाहित बहन,भाई को भोजन पर आमंत्रित कर हर्षोल्लास से भाई दूज मनाती है।
दीपावली वास्तव में मिलन का त्योहार है।सभी अपनों से इस दिन मिलते हैं। खुशी से त्योहार मनाते हैं।”आज की भाग-दौड़ की ज़िंदगी में ऐसे त्योहार आपसी प्रेम बढ़ाते हैं। रिश्तों में मिठास भरते हैं। सभी परिवारजन एक-दूसरे से दिल से जुड़ते हैं। आपस में मिल लेते हैं तो रिश्ते मजबूत बन जाते हैं। ये त्योहार रिश्तों में आई दूरियों को कम कर देते हैं। बुजुर्ग व्यक्ति जिन्होंने पूरे परिवार को जोड़ने का काम किया,उन्हें आज के दिन पूरे परिवार के साथ मिलकर बड़ी खुशी होती हैं।
दीपावली से व्यापारी नया वर्ष मानते हैं।सालभर का लेखा-जोखा खत्म कर वे नई रोकड़ खाता बही बनाते हैं। पूजा करते हैं।
लेखक-कवि कलम-दवात की पूजा करते हैं। दीपों की अवली यानी पंक्ति सजाई जाती है। इसे दीवाली दीपावली या जश्न-ए-चिराग भी कहा जाता है। इस दीवाली को हम कुछ ऐसे मनाएं कि खुदरा व छोटे विक्रेता से सामान खरीदें,इलेक्ट्रिक झालरों की जगह दीपों का अधिक उपयोग करें,गरीबों में उपहार व आवश्यक वस्तुएं बांटें,हरित दीवाली मनाएं,पटाखों के प्रतिबंध के विषय में लोगों में जागरूकता लाएं। इन सब बातों का ख्याल रखकर दीवाली को हम मनमोहक व समृद्ध बना सकते हैं। लोगों के लिए श्वांस लेना मुश्किल हो रहा है,ऐसे में प्रदूषण को रोकने की जरूरत है।

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