पटना (बिहार)।
अपने युग की साहित्यिक और सांस्कृतिक चेतना को दिशा और दृष्टि प्रदान करने वाले युग-प्रवर्त्तक साहित्यकार आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी थे। हिन्दी भाषा और साहित्य के महान उन्नायकों में वरेण्य आचार्य द्विवेदी के महान साहित्यिक अवदानों के कारण ही उनकी साहित्य-साधना के युग को हिन्दी साहित्य के इतिहास में ‘द्विवेदी-युग’ के रूप में स्मरण किया जाता है।
बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में द्विवेदी-जयंती पर आयोजित पुस्तक लोकार्पण समारोह एवं लघुकथा-गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए सम्मेलन अध्यक्ष डॉ. अनिल सुलभ ने यह बातें कही। डॉ. सुलभ ने कहा कि द्विवेदी जी ने साहित्यिक पत्रिका ‘सरस्वती’ के
माध्यम से हिन्दी का महान यज्ञ आरंभ किया था। इस अवसर पर लेखिका डॉ. सुषमा कुमारी की पुस्तक ‘पटकथा लेखन में कौशल अभिव्यक्ति’ का लोकार्पण भारतीय पुलिस सेवा के वरिष्ठ अधिकारी विकास वैभव ने किया। श्री वैभव ने कहा कि हिन्दी साहित्य के दिनकर, नेपाली, प्रेमचंद जैसे कवियों-लेखकों की भाँति आज रचनाएँ नहीं हो रही। लेखन के प्रति आवश्यक निष्ठा और श्रम का अभाव हो रहा है।लोकार्पित पुस्तक में अपेक्षित निष्ठा और श्रम लक्षित होता है। हम गौरवान्वित होंगे, जब भविष्य में आचार्य द्विवेदी और दिनकर जैसे साहित्यकार देख सकेंगे।
बिहार विधान परिषद की पूर्व सदस्य और सुप्रसिद्ध विदुषी प्रो. किरण घई ने लेखिका सुषमा कुमारी को बधाई दी। इस अवसर पर गोष्ठी में लेखिका विभा रानी श्रीवास्तव ने ‘उजाले में’, शमा कौसर ‘शमा’ ने ‘पश्चाताप’, कुमार अनुपम ने ‘हिन्दी प्रेम’ और मधु दिव्या ने ‘लाश की हत्या’ आदि शीर्षक से अपनी लघुकथा का पाठ किया।
मंच का संचालन ब्रह्मानन्द पाण्डेय ने किया। धन्यवाद ज्ञापन प्रो. सुशील कुमार झा ने किया।