ममता तिवारी ‘ममता’
जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)
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हरतालिका तीज विशेष…
भगवती माँ पर्वतराज पुत्री पार्वती शिव जी को ही अपना वर वरण करने के लिए घनघोर जंगल में तपस्या रत हो गई। दूब का रस, दूर्वा, पर्ण खा कर अपर्णा, इत्यादि नाम रखती। शिव जी को प्रसन्न होते न देखकर मात्र जल में रहने लगी। शिव जी को न आते देख जल भी छोड़ निर्जल तप करने लगी। शिव जी प्रसन्न हुए, प्रकट हुए और माता भवानी को अंगीकार किया।
इस घटनाक्रम के परिप्रेक्ष्य में भारतीय नारी अपनी गृहस्थी कल्याणकारी बनाने, पति की दीर्घायु और कन्याएं शिव जी जैसा पति प्राप्त करने हेतु यह व्रत निर्जल रात्रि जागरण, भजन षोडशोपचार पूजन साथ करती है।
मेरा मन सदैव एक बात पर अटकता रहा कि, औघड़दानी, क्या जगहितार्थ विष भी पी जाने वाले, श्मशान वासी, भूत-प्रेत, पशु-पक्षी के रक्षक स्वामी, क्रोध में तांडव करने वाले, अपनी ससुराल में (कैलास हिमालय पर्वत पर) रहने वाले को नशा करने वाला मैं नहीं मानती (हमने हिमालय राज पर्वत पर केदारनाथ, नेपाल, अमरनाथ के पर्यटन के दौरान हर जगह भांग-गांजे जंगली झाड़ियों के रूप में यत्र-तत्र-सर्वस्त्र उगा हुआ देखा है। प्रकृति वही पादप उस स्थान पर उपजाती है, जिसकी जरूरत हो। हिम आच्छादित पर्वतों में जहाँ रक्त भी जम जाता हो, दवा और गर्मी के लिए इसे वहां उपयोग करते हैं, यह उधर के निवासियों ने बताया।)। …तो क्या कन्याएं ऐसे शिव जी जैसा पति चाहती है ? नहीं..।
शिव जी ने माता पार्वती को इतना प्रेम दिया, इतना सम्मान दिया कि, प्रेम और पत्नी के सम्मान की सर्वोच्च परिभाषा उमा-महेश्वर अर्धनारीश्वर के रूप में देते हैं। इसलिए, कन्याएं शिव जी जैसा पति और महिलाएं पति को शिव जी जैसा प्रेम-सम्मान करने वाला बन जाए, इस हेतु व्रत रखती हैं। दीर्घायु औऱ मंगल कामना तो है ही। सात जन्मों तक उसी को पति या पत्नी रूप में पाने की कामना का वर्णन हमारे धर्मग्रंथों में है। कोई लठ खा कर, अपमान झेल कर सात जन्म साथ थोड़ी रहना चाहेगा…।
आजकल कुछ पुरूषों में पत्नी के लिए तीज और करवाचौथ जैसे व्रत रखने का चलन बढ़ रहा है। यह अपनी पत्नी की भावनाओं को सम्मान देने के लिए है। पुरूष व्रत भले न रखें पर पत्नी की ४ लोगों और समाज के सामने उपेक्षा, अवहेलना, पुरुष होने के अहम में घुड़कना-झिड़कना न करे, यह भी व्रत है। यह तभी कर सकता है, जब वह अकेले में भी सम्मान रखे।
महिलाओं के साथ अब मानसिक प्रताड़ना अधिक होती है। पहले मानसिक के साथ शारीरिक प्रताड़ना भी होती थी।
बस, सभी से यही कहना है शिव जी नहीं बन सकते, तो शिव जी जैसे पति अवश्य बनिए और स्त्री माँ पार्वती का अनुकरण करें।
परिचय–ममता तिवारी का जन्म १अक्टूबर १९६८ को हुआ है। वर्तमान में आप छत्तीसगढ़ स्थित बी.डी. महन्त उपनगर (जिला जांजगीर-चाम्पा)में निवासरत हैं। हिन्दी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती तिवारी एम.ए. तक शिक्षित होकर समाज में जिलाध्यक्ष हैं। इनकी लेखन विधा-काव्य(कविता ,छंद,ग़ज़ल) है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएं प्रकाशित हैं। पुरस्कार की बात की जाए तो प्रांतीय समाज सम्मेलन में सम्मान,ऑनलाइन स्पर्धाओं में प्रशस्ति-पत्र आदि हासिल किए हैं। ममता तिवारी की लेखनी का उद्देश्य अपने समय का सदुपयोग और लेखन शौक को पूरा करना है।