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गणेशोत्सव पर्व के उद्देश्य आज कितने सार्थक ?

डॉ.अरविन्द जैन
भोपाल(मध्यप्रदेश)
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गणेश चतुर्थी विशेष…

गणेश चतुर्थी हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है, जो भारत के विभिन्न भागों में मनाया जाता है, किन्तु महाराष्ट्र व कर्नाटक में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। पुराणों के अनुसार इसी दिन गणेश का जन्म हुआ था। गणेश चतुर्थी पर हिन्दू भगवान गणेश जी की पूजा की जाती है। इस प्रतिमा की ९ दिन तक पूजन की जाती है। ९ दिन बाद गानों और बाजों के साथ प्रतिमा को किसी तालाब-महासागर इत्यादि जल में विसर्जित किया जाता है। गणेश जी को ‘लम्बोदर’ नाम से भी जाना जाता है ।
पुराणानुसार ‘गणेश’ का अर्थ होता है गणों का ईश और ‘आदि’ का अर्थ होता है सबसे पुराना यानी सनातनी।
देश की आजादी के आन्दोलन में गणेश उत्सव ने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। अंग्रेजों ने भारत में एक कानून बना दिया था, जिसे ‘धारा १४४’ (आज भी लागू) है।
महान क्रांतिकारी बंकिम चंद्र चटर्जी ने १८८२ में ‘वन्दे मातरम्’ गीत लिखा था, जिस पर भी अंग्रेजों ने प्रतिबंध लगा कर गीत गाने वालों को जेल में डालने का फरमान जारी कर दिया था। इन दोनों बातों से लोगों में अंग्रेजों के प्रति बहुत नाराजगी व्याप्त थी। अंग्रेजों के प्रति भय को खत्म और इस कानून का विरोध करने के लिए महान स्वतंत्रता सेनानी लोकमान्य तिलक ने गणपति उत्सव की स्थापना की और सबसे पहले पुणे के शनिवारवाड़ा में उत्सव का आयोजन किया।
१८९४ से पहले लोग अपने घरों में गणपति उत्सव मनाते थे, लेकिन १८९४ के बाद इसे सामूहिक तौर पर मनाने लगे। शनिवारवाड़ा के उत्सव में हजारों लोगों की भीड़ उमड़ी। तब लोकमान्य तिलक ने अंग्रेजों को चेतावनी दी कि, हम गणपति उत्सव मनाएंगे, अंग्रेज पुलिस उन्हें गिरफ्तार करके दिखाए। कानून के मुताबिक अंग्रेज पुलिस किसी राजनीतिक कार्यक्रम में एकत्रित भीड़ को ही गिरफ्तार कर सकती थी, किसी धार्मिक समारोह में उमड़ी भीड़ को नहीं।
लोकमान्य तिलक वहां भाषण के लिए हर दिन किसी बड़े नेता को आमंत्रित करते। फिर धीरे-धीरे महाराष्ट्र के अन्य बड़े शहर अहमदनगर, मुंबई, नागपुर, थाणे तक गणपति उत्सव बढ़ता गया। उत्सव में हर वर्ष हजारों लोग एकत्रित होते और बड़े नेता उसको राष्ट्रीयता का रंग देने का कार्य करते थे। इस तरह लोगों का उत्साह और राष्ट्र के प्रति चेतना बढ़ती गई।
१९०४ में लोकमान्य तिलक ने लोगों से कहा-“गणपति उत्सव का मुख्य उद्देश्य स्वराज्य हासिल करना है। आजादी हासिल करना है और अंग्रेजों को भारत से भगाना है। आजादी के बिना गणेश उत्सव का कोई महत्व नहीं रहेगा।” तब पहली बार लोगों ने इस उद्देश्य को बहुत गंभीरता से समझा। आजादी के आन्दोलन में लोकमान्य तिलक द्वारा गणेश उत्सव को लोकोत्सव बनाने के पीछे सामाजिक क्रान्ति का उद्देश्य था।
लोकमान्य तिलक ने ब्राह्मणों और गैर ब्राह्मणों की दूरी समाप्त करने के लिए यह पर्व प्रारम्भ किया था, जो आगे एकता की मिसाल बना।

जिस उद्देश्य को लेकर लोकमान्य तिलक ने गणेश उत्सव को प्रारम्भ करवाया था, वो उद्देश्य आज कितने सार्थक हो रहे हैं। आज के समय में पूरे देश में पहले से कहीं अधिक धूमधाम के साथ गणेशोत्सव मनाए जाते हैं, मगर आज दिखावा अधिक नजर आता है। आपसी सद्भाव व भाईचारे का अभाव दिखता है।

परिचय- डॉ.अरविन्द जैन का जन्म १४ मार्च १९५१ को हुआ है। वर्तमान में आप होशंगाबाद रोड भोपाल में रहते हैं। मध्यप्रदेश के राजाओं वाले शहर भोपाल निवासी डॉ.जैन की शिक्षा बीएएमएस(स्वर्ण पदक ) एम.ए.एम.एस. है। कार्य क्षेत्र में आप सेवानिवृत्त उप संचालक(आयुर्वेद)हैं। सामाजिक गतिविधियों में शाकाहार परिषद् के वर्ष १९८५ से संस्थापक हैं। साथ ही एनआईएमए और हिंदी भवन,हिंदी साहित्य अकादमी सहित कई संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आपकी लेखन विधा-उपन्यास, स्तम्भ तथा लेख की है। प्रकाशन में आपके खाते में-आनंद,कही अनकही,चार इमली,चौपाल तथा चतुर्भुज आदि हैं। बतौर पुरस्कार लगभग १२ सम्मान-तुलसी साहित्य अकादमी,श्री अम्बिकाप्रसाद दिव्य,वरिष्ठ साहित्कार,उत्कृष्ट चिकित्सक,पूर्वोत्तर साहित्य अकादमी आदि हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-अपनी अभिव्यक्ति द्वारा सामाजिक चेतना लाना और आत्म संतुष्टि है।