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सरकारी जासूसी पर हंगामा

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली) 
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हमारी संसद के दोनों सदन पहले दिन ही स्थगित हो गए। विपक्षी सदस्यों ने सरकारी जासूसी का मामला जोरों से उठा दिया है। उन्होंने सरकार पर आरोप लगाया कि वह देश के लगभग ३०० नेताओं,पत्रकारों और जज आदि पर जासूसी कर रही है। इन लोगों में २ केंद्रीय मंत्री,३ विरोधी नेता, ४० पत्रकार और कई अन्य व्यवसायों में लगे लोग भी शामिल हैं। यह जासूसी इस्राइल की एक प्रसिद्ध कंपनी के सॉफ्टवेयर ‘पेगासस’ के माध्यम से होती है। इस सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करके सरकार देश के महत्वपूर्ण लोगों के ई-मेल, व्हाट्सएप और संवाद सुनती है। यह रहस्योदघाटन सिर्फ भारत के बारे में ही नहीं हुआ है। इस तरह के सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल ४० देशों की संस्थाएं कर रही हैं। यह जासूसी लगभग ५० हजार लोगों पर की जा रही है। सॉफ्टवेयर को बनानेवाली कंपनी एनएसओ ने दावा किया है कि वह अपना यह माल सिर्फ संप्रभु सरकारों को ही बेचती है ताकि वे आतंकवादी,हिंसक,अपराधी और अराजक तत्वों पर निगरानी रख सकें। इस कंपनी के रहस्यों का भांडाफोड कर दिया फ्रांस की कंपनी ‘फारबिडन स्टोरीज़’ और ‘एमनेस्टी इंटरनेशनल’ ने। इन दोनों संगठनों ने इसकी भांडाफोड़ खबरें कई देशों के प्रमुख अखबारों में छपा दी हैं। भारत में जैसे ही यह खबर फूटी,तहलका-सा मच गया। अभी तक उन ३०० लोगों के नाम प्रकट नहीं हुए हैं,लेकिन कुछ पत्रकारों के नामों की चर्चा है। विरोधी नेताओं ने सरकार पर हमला बोलना शुरु कर दिया है। उन्होंने कहा है कि इस घटना से यह सिद्ध हो गया है कि मोदी-राज में भारत ‘पुलिस स्टेट’ बन गया है। सरकार अपने मंत्रियों तक पर जासूसी करती है और पत्रकारों पर जासूसी करके वह लोकतंत्र के चौथे खंबे को खोखला कर रही है। सरकार ने इन आरोपों का खंडन किया है। उसने कहा है कि पिछले साल भी ‘पेगासस’ को लेकर ऐसे आरोप लगे थे,जो निराधार सिद्ध हुए थे। नए सूचना मंत्री ने संसद को बताया कि किसी भी व्यक्ति की गुप्त निगरानी करने के बारे में कानून-कायदे बने हुए हैं। सरकार उनका सदा पालन करती है। यहां असली सवाल यह है कि इस सरकारी जासूसी को सिद्ध करने के लिए क्या विपक्ष ठोस प्रमाण जुटा पाएगा ? यदि ठोस प्रमाण मिल गए और सरकार-विरोधी लोगों के नाम उनमें पाए गए तो सरकार को लेने के देने पड़ सकते हैं। इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और लोकतंत्र की हत्या की संज्ञा दी जाएगी। यों तो पुराने राजा-महाराजा और दुनिया की सभी सरकारें अपना जासूसी-तंत्र मजबूती से चलाती हैं लेकिन यदि उसकी पोल खुल जाए तो वह जासूसी-तंत्र ही क्या हुआ ? जहां तक पत्रकारों और नेताओं का सवाल है,उनका जीवन तो खुली किताब की तरह होना चाहिए। उन्हें जासूसी से क्यों डरना चाहिए ? वे जो कहें और जो करें,वह खम ठोंक कर करना चाहिए।

परिचय– डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।

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