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साजन विरह नैन मैं भी बरसूँ

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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इन बारिश की बूंदों में भीगूं,
तन मन प्रीति हृदय गुलज़ार बनूँ।
पलकों में छिपा मृगनैन नशा प्रिय,
मुस्कान चपल अधर इज़हार करूँ।

दूज चन्द्रकला सम मधु प्रीति नवल,
घनश्याम मेघ सजन को तड़पाऊं।
रजनीकांत प्रभा खिल व्योम हृदय,
रजनीगंधा सजनी बन महकाऊं।

रिमझिम फूहार अभिसारिका मदन,
भीग गात्र चारु यौवन इठलाऊं।
रति ताप पयोधर मदमत्त युगल,
बिन दिलवर निशि कैसे बहलाऊँ।

झींगुर झिन-झिन रब आहत चितवन,
जुगनू ज्योति मंद राहत पाऊँ।
विरहाग्नि हृदय सावन बरसे घन,
नवगीत प्रीत मुदित संगीत बनूँ।

बीती विभावरी अरुणाभ भोर,
देख चकोर युगल ढाढस पाऊँ।
रंजित इन्द्रधनुष नीलाभ गगन,
लखि प्रीति मिलन अभिलाष जगाऊँ।

भीगूं सावन तनु गुलबदन सजन,
विधिलेख नूर बनी श्रंगार सजूं।
बस स्वागत हिय प्रियतम अभिनंदन,
कजरारी आँखों से इन्तज़ार करूँ। ल

यह मनुहार नहीं,अभिव्यक्ति प्रेम,
बस नैन अश्क आश आभास करूँ।
दादुर बादर विद्युत नभ गर्जन,
बन निर्भीक सजन बिंदास बनूँ।

घन प्रकृति साक्ष्य हैं प्रीति धवल,
सर्वस्व अर्पण जीवन सजन करूँ।
सुष्मित हरितिम ये पादप निकुंज,
बाट प्रीत मिलन लखि हिय आस धरूँ।

जित चाहो चमको बिजली अम्बर,
बरसो बदरा तनु मैं न डरूँ।
जलबूंद भीग तनु बढ़ हिय धड़कन,
साजन विरह नैन मैं भी बरसूँ॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥

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