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साथ सभी से छूट गया…

राजबाला शर्मा ‘दीप’
अजमेर(राजस्थान)
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सुरों की अमर ‘लता’ विशेष-श्रद्धांजलि….

बिखर गई है स्वर की माला,
एक मनका स्वर का टूट गया।
लता दीदी तुम अमर हो गई,
साथ सभी से छूट गया।

सप्त-स्वरों की धारा थीं,
वीणा की मधुरम झंकार
सुर-तालों की साम्राज्ञी थीं,
जनमानस में बसा था प्यार।
धरा पे स्वर्ग की देवी-सी तुम,
जिसके सुरों की अजब बहार
भारतवर्ष की स्वर-ज्योति को,
कौन लुटेरा लूट गया ?
साथ सभी से छूट गया…

पावन गंग-स्वरूपा थीं,
सुर-देवी थी पहचान
बातें मीठी-मीठी करतीं,
श्वेत वसन पर था अभिमान।
कृतित्व तुम्हारे अनुकरणीय,
सादा जीवन तुम्हारी शान
आज सभी की आँखें नम हैं,
संगीत का घटक फूट गया।
साथ सभी से छूट गया…

कहां खो गया है वो सितारा,
आसमान भी है गुमसुम
दुनिया भी हैरान रह गई,
स्वर-कोकिला सो गई तुम।
भारत-रत्न,सरस्वती सम,
सुर साम्राज्ञी हो गई गुम
साजों की लय मौन हो गई,
वक्त क्यों हमसे रूठ गया।
साथ सभी से छूट गया…

माधुर्य रस की ख़ान थीं,
हिंदुस्तान की शान थीं
हर भाषा में गीत गाए,
हर रस की पहचान थीं।
रत्न-सदृश्य अनमोल लता,
सहज,सरल प्यारी-सी लता
सुर-विटप से बल्लरी,
का नाता हाय! टूट गया।
साथ सभी से छूट गया…॥

परिचय– राजबाला शर्मा का साहित्यिक उपनाम-दीप है। १४ सितम्बर १९५२ को भरतपुर (राज.)में जन्मीं राजबाला शर्मा का वर्तमान बसेरा अजमेर (राजस्थान)में है। स्थाई रुप से अजमेर निवासी दीप को भाषा ज्ञान-हिंदी एवं बृज का है। कार्यक्षेत्र-गृहिणी का है। इनकी लेखन विधा-कविता,कहानी, गज़ल है। माँ और इंतजार-साझा पुस्तक आपके खाते में है। लेखनी का उद्देश्य-जन जागरण तथा आत्मसंतुष्टि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-शरदचंद्र, प्रेमचंद्र और नागार्जुन हैं। आपके लिए प्रेरणा पुंज-विवेकानंद जी हैं। सबके लिए संदेश-‘सत्यमेव जयते’ का है।

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