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सुख-दु:ख जीवन के हिस्से…

नरेंद्र श्रीवास्तव
गाडरवारा( मध्यप्रदेश)
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सुख-दु:ख जीवन के हिस्से हैं,जो हिस्से में,जब आ जायें।
सुख आये तो संयम बरतें,दु:ख आने पर,ना घबरायें॥

सुख के पल खरगोश-दौड़ से,
दु:ख कछुए की चाल धरे।
सुख की मस्ती मदहोशी दे,
दु:ख जीना बेहाल करे।
सुख-दुख के इस भँवर जाल में,
भ्रमित ना हो,मन समझावें॥

कर्म,भोग दोनों ही हैं यहाँ,
नियति चक्र ये है अविरल।
सुख-दु:ख हैं प्रारब्ध कर्म के,
पाप-पुण्य का है प्रतिफल।
करें सतत सत्कर्म सदा ही,
जीवन चंदन-सम महकावें॥

कहने को संसार पड़ा है
सच ये सभी अकेले हैं।
लोभ,मोह,माया,ममता के,
कोरे मात्र झमेले हैं।
नेक भावना रखकर दिल में,
मानवता का धर्म निभायें॥

मन में दृढ़ संकल्प रखें ये,
निश्चल,निश्छल जीवन हो।
प्रेम,त्याग,सद्भाव रहे और
दायित्वों का निर्वहन हो।
सुख की दिशा करेंगे तय ये,
सत्कर्म से प्रारब्ध सजायें।
सुख आये तो संयम बरतें,
दु:ख आने पर मत घबरायें॥

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