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सुहानी भोर किरणों से…

हीरा सिंह चाहिल ‘बिल्ले’
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)

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सुहानी भोर किरणों से,नया इक दिन हुआ रौशन।
खिलीं कलियां बिछीं बूंदें,दिखें मोती सी ये बन-बन॥

अंधेरा रात भर का था,उजाला देखकर भागा,
गईंं नींदें,खुली आँखें,पहर दिन का नया जागा।
समय नूतन है पहरों का,गई हर नींद वादी से,
लगे कितना सुहाना ये,नजारा भोर किरणों से।
सुहानी भोर की किरणें…॥

उतरकर सूर्य की किरणें,चली आतीं गगन से भी,
बिछातीं हैं छटा मोहक,सजातीं हैं लगन से ही।
जरा देखो निखार इनका,सजे प्यारा है ये कितना,
कहें किसको दिखे सबको,नजारा भोर किरणों का।
सुहानी भोर की किरणें…॥

समय कल भी ये आया था,हमेशा ही ये आयेगा,
यही आगाज हर दिन का,यही अंजाम भी होगा।
किया करता इशारे भी,सभी को खूबसूरत से,
समझ की बात जो समझे,वही जीवन सफल होता।
सुहानी भोर किरणों से…॥

परिचय-हीरा सिंह चाहिल का उपनाम ‘बिल्ले’ है। जन्म तारीख-१५ फरवरी १९५५ तथा जन्म स्थान-कोतमा जिला- शहडोल (वर्तमान-अनूपपुर म.प्र.)है। वर्तमान एवं स्थाई पता तिफरा,बिलासपुर (छत्तीसगढ़)है। हिन्दी,अँग्रेजी,पंजाबी और बंगाली भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री चाहिल की शिक्षा-हायर सेकंडरी और विद्युत में डिप्लोमा है। आपका कार्यक्षेत्र- छत्तीसगढ़ और म.प्र. है। सामाजिक गतिविधि में व्यावहारिक मेल-जोल को प्रमुखता देने वाले बिल्ले की लेखन विधा-गीत,ग़ज़ल और लेख होने के साथ ही अभ्यासरत हैं। लिखने का उद्देश्य-रुचि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-कवि नीरज हैं। प्रेरणापुंज-धर्मपत्नी श्रीमती शोभा चाहिल हैं। इनकी विशेषज्ञता-खेलकूद (फुटबॉल,वालीबाल,लान टेनिस)में है।

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