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सृष्टि सर्जिका जगजननी

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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नारी से नारायणी (महिला दिवस विशेष)…

वह संघर्ष से सफलता तक, अद्भुत विधान दर्शाती है,
नारी का सम्मान ही जीवन, पौरुषता पथ ले जाती है
सोपानों को चढ़ती नारी, कीर्ति पताका लहराती है,
जीवन के हर क्षेत्र अग्रसर, अरमानों को पहुँचाती है।

शौर्य वीर चहुँ सीमाओं पर, नार्य वीरता दिखलाती है
चाहे जल स्थल या हो अम्बर, मातृभूमि पर बलि जाती है
राजनीति के चरम शिखर पर, सत्ता गाथा लिख जाती है,
न्यायालय सर्वोच्च न्याय पद, न्याय विधायक बन जाती है।

नृत्य गीत संगीत कलाविद, साहित्यकार बन मुस्काती है,
लोकतंत्र की चौथी आँखें, पत्रकारिता दिखलाती है
लोकतंत्र रक्षक बन नारी अभिव्यक्ति निज दे पाती है,
महाशक्ति विकराल कालिका, रौद्र रूप भी दिखलाती है।

लज्जा श्रद्धा चिन्ता ममता, क्षमा दया करुणा भाती है,
प्रेम गीत ममतांचल लोरी, सन्तति जीवन बन जाती है
सीता गीता मनमीता बन, राधा मीरा यश पाती है,
माता बहना तनया पत्नी, वधू रूप शोभा पाती है।

नारी शक्ति भक्ति प्रीति रस, अन्तर्भावों बह जाती है,
कोमल किसलय कुसुमित सुरभित, अश्रुनैन दिल बह जाती है।
परिणीता परकीया नारी, सबला निर्भीता ख़ुद पाती है,
सृष्टि सर्जिका जगजननी बन, विविध रूप बन जग भाती है॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥