डॉ.अरविन्द जैन
भोपाल(मध्यप्रदेश)
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संसार की प्रत्येक वास्तु औषधि है, इसके सिवाय कुछ नहीं। जी हाँ, जैसे संसार में हजारों पौधे-फूल हैं, पर हम उनके बारे में नहीं जानते तो हमारे लिए अनुपयोगी हैं, किन्तु जो जानकार होते हैं वे उसका उपयोग करते हैं। रोग के स्थान २ होते हैं-शरीर और मन। दोनों एक-दूसरे के पूरक होते हैं। कभी आप मन से दुखी हों और कोई आपको सांत्वना दे तो राहत महसूस करते हैं। यह एक चिकित्सा है। मनोवैज्ञानिक मानसिक दुखों को दूर करने का परामर्श देते हैं, यही चिकित्सा होती है।
हास्य चिकित्सा के जरिए लोग अपने रिश्ते और भावनात्मक स्वास्थ्य को बेहतर कर सकते हैं एवं अपनी जिंदगी के सालों को भी बढ़ा सकते हैं।
‘हँसना सबसे बेहतरीन दवा है’, इस कथन के पीछे कई वजह हैं। यह दर्द से राहत दिला सकता है, मन को अच्छा कर सकता है, प्रतिरोधकता को बेहतर कर सकता है और ख़ुशी ला सकता है। दरअसल तन और मन को संतुलित करने के लिए हँसना बेहतरीन हथियार साबित हो सकता है। सदियों से इस तरीके को तन और मन को शान्ति प्रदान करने के लिए इस्तेमाल किया जाता रहा है। आज की भाग-दौड़ भरी जिंदगी में तनाव होना बहुत ही आम बात हो गई है। इसलिए शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए जरूरी है हँसते रहना।
हास्य चिकित्सा एक तरह की संज्ञानात्मक व्यवहार चिकित्सा होती है। इस तरह की चिकित्सा से मानसिक, शारीरिक और सामजिक रिश्ता अच्छा हो सकता है जिसके परिणामस्वरुप जिंदगी की गुणवत्ता भी बेहतर हो सकती है।
जब हम हँसते हैं, तो न केवल हमारा मानसिक भार कम होता है, बल्कि शरीर के अन्दर कई बदलाव भी होते हैं। इसके अलावा इस चिकित्सा के लिए किसी विशेष उपकरण या तरीके की जरुरत नहीं होती है। इसे आसानी से किया जा सकता है।
बूढ़े व्यक्तियों के लिए अकेलेपन और जीवन की संतुष्टि पर इस चिकित्सा के प्रभाव को देखा गया, और पाया गया कि जिन लोगों ने इसमें हिस्सा लिया, उनमें हिस्सा न लेने वाले लोगों की तुलना में कम अकेलापन महसूस हुआ। हिस्सा लेने से उनमें चिंता, अनिद्रा और सम्पूर्ण स्वास्थ्य में सुधार हुआ।
जहाँ माताओं की हँसी शिशुओं के एक्जिमा के इलाज के लिए फायदेमंद हो सकती है, वहीं यह प्रोटीन के स्तर को कम कर सकती है। यह प्रोटीन डायबिटिक नेफ्रोपैथी की प्रगति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
इस चिकित्सा से शरीर के अंग उत्तेजित होते हैं तो व्यक्ति ताजा ऑक्सीजन ज्यादा ले पाता है। यह मांसपेशियों, फेफड़ों और हृदय को उत्तेजित करती है और मस्तिष्क द्वारा एंडोर्फिन के रिलीज को बढ़ावा देती है। खून के प्रवाह में सुधार करके हृदयाघात और विभिन्न बीमारियों से रक्षा प्रदान करती है। ऐसे ही हार्मोन में कमी करती है तो
रोजाना १०-१५ मिनट हँसने से करीब ४० कैलोरी बर्न होती है। इसी तरह यह मन को बेहतर बनाती है। इससे दर्द कम होता है तो मांसपेशियों में तनाव भी कम होता है।
इसे लेकर यह मानना है कि स्वैच्छिक हँसी के उतने ही मनोवैज्ञानिक और शारीरिक लाभ हैं, जितने सहज हंसी के। विज्ञान कहता है कि हमारी हँसी असली हो या नकली, इसका हमारे शरीर पर समान और सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। हँसने से रिश्ते और सामाजिक जुड़ाव भी बढ़ सकता है। इससे सुरक्षा की भावना आती है, जिससे व्यक्ति ज्यादा आराम महसूस करता है।
वर्तमान में मनुष्य के चेहरे से हँसी गायब हो गई है। ऐसे लगता है मानो हम मुर्दों का जीवन जी रहे हैं। तनाव-उलझन किसके पास नहीं है, उनका निपटान मन के साथ हँसी से आ सकता है
परिचय- डॉ.अरविन्द जैन का जन्म १४ मार्च १९५१ को हुआ है। वर्तमान में आप होशंगाबाद रोड भोपाल में रहते हैं। मध्यप्रदेश के राजाओं वाले शहर भोपाल निवासी डॉ.जैन की शिक्षा बीएएमएस(स्वर्ण पदक ) एम.ए.एम.एस. है। कार्य क्षेत्र में आप सेवानिवृत्त उप संचालक(आयुर्वेद)हैं। सामाजिक गतिविधियों में शाकाहार परिषद् के वर्ष १९८५ से संस्थापक हैं। साथ ही एनआईएमए और हिंदी भवन,हिंदी साहित्य अकादमी सहित कई संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आपकी लेखन विधा-उपन्यास, स्तम्भ तथा लेख की है। प्रकाशन में आपके खाते में-आनंद,कही अनकही,चार इमली,चौपाल तथा चतुर्भुज आदि हैं। बतौर पुरस्कार लगभग १२ सम्मान-तुलसी साहित्य अकादमी,श्री अम्बिकाप्रसाद दिव्य,वरिष्ठ साहित्कार,उत्कृष्ट चिकित्सक,पूर्वोत्तर साहित्य अकादमी आदि हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-अपनी अभिव्यक्ति द्वारा सामाजिक चेतना लाना और आत्म संतुष्टि है।