कवि योगेन्द्र पांडेय
देवरिया (उत्तरप्रदेश)
*****************************************
कभी विरह के गीत लिखकर,
अश्रु धार से नयन सींचकर
विष से भरी हुई प्याली को,
हँसते-हँसते स्वीकार किया है।
हाँ, मैंने भी प्यार किया है…
प्रेम पाश से घायल होकर,
जग की सुधियाँ यूँ ही खोकर
हृदय सिंधु में तेरी मूरत,
रख कर मैंने श्रृंगार किया है।
हाँ, मैंने भी प्यार किया है…
राहों में पड़े हुए हैं शूल,
मुश्किल से खिले हुए हैं फूल
तुमसे मिलने को व्याकुल हो,
लाखों दरिया को पार किया है।
हाँ, मैंने भी प्यार किया है…॥