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हिन्दी को अंतर्राष्ट्रीय मंच पर उभारने का प्रथम श्रेय शास्त्री जी को

नकुल त्यागी
मुरादाबाद(उप्र)
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विशेष श्रृंखला:भारत-भाषा सेनानी…..


आर्य समाज के प्रसिद्ध नेता,संसद में हिन्दी के ओजस्वी वक्ता,हिंदी एवं संस्कृत के प्रकांड विद्वान पूर्व सांसद स्व. प्रकाशवीर शास्त्री का जन्म ३० दिसंबर १९२३ को उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद के रेहरा गाँव में हुआ था। आगरा विश्वविद्यालय से एम.ए. करने के बाद गुरुकुल वृन्दावन के उप कुलपति नियुक्त किए गए,तथा शास्त्री की उपाधि हासिल की। तब से ही नाम के आगे शास्त्री लगाने लगे। देश के प्रथम शिक्षा मंत्री मौलाना अब्दुल कलाम आज़ाद के देहांत के बाद १९५८ में गुड़गांव से उप चुनाव में जीत हासिल कर संसद के निचले सदन (लोक सभा) में निर्दलीय सदस्य के रूप में प्रवेश किया। उसके बाद कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा।
संसद में धारा प्रवाह हिंदी में जब वह सरकार की आलोचना करते थे तो विरोधी दल के साथ साथ सरकारी बेंच के सदस्य भी उनकी वाणी सुनने के लिए उत्सुक रहते थे। उन दिनों संसद में मंजे हुए वक्ताओं में शास्त्री जी की गिनती की जाती थी। हिन्दी के क्षेत्र में शास्त्री जी द्वारा किए गए प्रयासों को लोग आज भी याद करते हैं। आकाशवाणी से उन दिनों अंग्रेजी के समाचार पहले प्रसारित होते थे और हिन्दी के बाद में। शास्त्री जी ने संसद में इस पर मांग की कि हिन्दी राष्ट्रभाषा है तो उसका प्रसारण पहले होना चाहिए। सरकार ने उनके सुझाव को मान लिया। इसी प्रकार भारत सरकार की राष्ट्रीय मुद्रा में रिजर्व बैंक के गवर्नर के हस्ताक्षर तब केवल अंग्रेजी भाषा में ही होते थे,परंतु शास्त्री जी के सुझाव के बाद यह दोनों भाषाओं में होने लगे।
हिन्दी को अन्तराष्ट्रीय मंच पर उभारने का प्रथम श्रेय प्रकाशवीर शास्त्री को जाता है। वह एक बार अन्तर्सन्सदीय सम्मेलन में भाग लेने स्पेन की राजधानी गए। सम्मेलन का समस्त कार्य अंग्रेजी या फ्रांसीसी भाषा में ही होता था,परंतु सदस्यों को छूट थी कि अगर वे इसके अतिरिक्त अपना भाषण किसी अन्य भाषा में देना चाहें तो ५ प्रतियां अंग्रेजी या फ्रांसीसी भाषा में टंकण करा कर दे दें,तो अपनी भाषा में बोल सकते हैं। शास्त्री जी ने सुविधा का लाभ उठा कर इस अन्तर्राष्ट्रीय मंच से पहली बार राष्ट्रभाषा हिन्दी में अपना भाषण दिया।
२३ नवम्बर १९७७ को जयपुर से दिल्ली आते हुए शास्त्री जी का हरियाणा में रेवाड़ी के पास देहांत हो गया। इस दुर्घटना में देश ने एक अच्छे वक्ता को खो दिया,जिसकी कमी संसद व बाहर आज भी खलती है।

(सौजन्य:वैश्विक हिंदी सम्मेलन,मुम्बई)

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