श्रीमती देवंती देवी
धनबाद (झारखंड)
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हिन्दुस्तान का बेटा, हिन्दुस्तानी अद्भुत माँ के लाल थे।
त्याग दिया घर-द्वार क्योंकि, दुश्मनों के वो महाकाल थे।
प्यारी वसुन्धरा के लिए, जीवन अपना त्याग दिए थे,
दुश्मन पैर रखे ना धरा पे, सोच के मन में आग लिए थे।
परमवीर का ‘चेतक’ अश्व जब, युद्ध भूमि में आया था,
कलेजा दहला था अकबर का, रण छोड़ के भागा था।
चेतक पर हो के सवार, महाराणा प्रताप जी जब आए थे,
ऐसे तलवार चलाते सरहद पर, दुश्मन सभी थर्रा गए थे।
वीर पुत्र महाराणा प्रताप जी का घोड़ा हवा में उड़ता था,
बाप-बाप कह कर अकबर का सेनानायक भी डर से भागता था।
परम वीर भारत माता के लाल, धरा के अनमोल रतन कहाते थे,
थके हुए भारतीय सैनिकों के, वे हृदय में उमंग जगाते थे।
लहू से रंगी रहती थी प्रताप जी की चमकती तलवार,
चेतक नें भी खूब रौंदा, दुश्मनों को बढ़ाकर खुर की धार।
मातृभूमि बचाने के लिए, योद्धा प्रताप जी चढ़े बलिवेदी में,
‘लिपट गई परछाई’ प्रताप जी की, मौत की शहजादी में।
सभी के प्यारे वीर महाराणा जी, वसुन्धरा के प्यारे थे,
अचानक विदा हो गए धरा से, वे हिन्दुस्तान के दुलारे थे॥
परिचय– श्रीमती देवंती देवी का ताल्लुक वर्तमान में स्थाई रुप से झारखण्ड से है,पर जन्म बिहार राज्य में हुआ है। २ अक्टूबर को संसार में आई धनबाद वासी श्रीमती देवंती देवी को हिन्दी-भोजपुरी भाषा का ज्ञान है। मैट्रिक तक शिक्षित होकर सामाजिक कार्यों में सतत सक्रिय हैं। आपने अनेक गाँवों में जाकर महिलाओं को प्रशिक्षण दिया है। दहेज प्रथा रोकने के लिए उसके विरोध में जनसंपर्क करते हुए बहुत जगह प्रौढ़ शिक्षा दी। अनेक महिलाओं को शिक्षित कर चुकी देवंती देवी को कविता,दोहा लिखना अति प्रिय है,तो गीत गाना भी अति प्रिय है |