पटना (बिहार)।
ई-पत्र-पत्रिकाएं और पुस्तकों के आने के बाद नए से नए रचनाकार भी आसानी से अपनी श्रेष्ठ सामग्री आमजन तक पहुंचाने में सक्षम हो गए हैं। ई-पत्र-पत्रिका या पुस्तकों के प्रचार-प्रसार को एक आंदोलन के रूप में भी देख सकते हैं, जिसने व्यक्ति समाज और साहित्य में जबरदस्त बदलाव लाने का प्रयास किया है।
भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वाधान में कवि कथाकार सिद्धेश्वर ने ऑनलाइन ‘तेरे मेरे दिल की बात’ के अंक में उपरोक्त उद्गार व्यक्त किए। सिद्धेश्वर के इस विचार पर राज प्रिया रानी ने कहा कि, ई-पत्रिका का अस्तित्व आज विस्तृत और बेहद किफायती बनता जा रहा है।
विजय कुमारी मौर्य ने कहा कि, ई -पत्र-पत्रिकाओं का महत्व बढ़ गया है क्योंकि इसका माध्यम सिनेमा, मोबाइल, टीवी, वीडियो स्लाइडिंग, इंटरनेट सोशल वेबसाइट है, जो आज के समय में युवा वर्ग को बहुत लुभाता है। ई-पत्र-पत्रिकाएं आज के आधुनिक समय की मांग है।
डॉ. अनुज प्रभात ने कहा कि आज के सोशल मीडिया के युग में ई-पत्र-पत्रिकाएं हमारे जीवन का आवश्यक अंग बन गई हैं। सपना चंद्रा ने कहा कि जहाँ तक ई पत्रिका की बात है, उसका भी अपना एक वर्ग है।
डॉ. शरद नारायण खरे (मप्र) ने कहा कि, यदि अच्छी-अच्छी रचनाएं लगातार देवी जाए, सोशल मीडिया पर पोस्ट हों, तो सबसे सशक्त माध्यम है ई पत्र पत्रिकाएं और पुस्तकें। माधवी जैन, रजनी श्रीवास्तव, पुष्प रंजन, एकलव्य केसरी, सुधा पांडे एवं नीलम श्रीवास्तव आदि ने भी विचार व्यक्त किए।