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अगर न होता!

राजू महतो ‘राजूराज झारखण्डी’
धनबाद (झारखण्ड) 
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अगर न होता सूर्य दिन में,
जग को प्रकाश दिखाता कौन
अगर न होता चाँद रात को,
फिर भला चाँदनी फैलता कौन ?

अगर न होती दादी-नानी,
हमें कहानी सुनाती कौन ?
अगर न होते प्यारे दादा जी,
फिर संस्कार सिखाता कौन।

अगर न होता प्यारा किसान,
फिर भूख कैसे मिटाता इंसान
अगर न होते शिक्षक महान,
फिर बताओ कौन बाँटता ज्ञान।

अगर न होते सीमा पर जवान,
फिर कैसे सुरक्षित देश महान
अगर न होता हमारा विज्ञान,
कैसे होता आविष्कार महान।

अगर न होते यहाँ भ्रष्ट नेता,
समाज टुकड़ों में कैसे बँटता
‘मत’, आरक्षण के नाम पर,
इंसान भला फिर कैसे लड़ता ?

अगर न होता स्वार्थ मन में,
दूसरे का हित कैसे खाता
कैसे करता कुकर्म जग में,
सदैव निंदनीय कैसे बनता ?

अगर न होता सत्य जग में,
फिर चलता कैसे सब काम
सत्कर्मों का ताँता जोड़कर,
फिर बनता कैसे अमर महान।

अगर न होते चिकित्सक सारे,
फिर हमारे रोग भगाता कौन ?
अगर न होता शिक्षक ‘राजू’ जग में,
आपसे प्रश्नोत्तर करता कौन ??

परिचय– साहित्यिक नाम `राजूराज झारखण्डी` से पहचाने जाने वाले राजू महतो का निवास झारखण्ड राज्य के जिला धनबाद स्थित गाँव- लोहापिटटी में हैL जन्मतारीख १० मई १९७६ और जन्म स्थान धनबाद हैL भाषा ज्ञान-हिन्दी का रखने वाले श्री महतो ने स्नातक सहित एलीमेंट्री एजुकेशन(डिप्लोमा)की शिक्षा प्राप्त की हैL साहित्य अलंकार की उपाधि भी हासिल हैL आपका कार्यक्षेत्र-नौकरी(विद्यालय में शिक्षक) हैL सामाजिक गतिविधि में आप सामान्य जनकल्याण के कार्य करते हैंL लेखन विधा-कविता एवं लेख हैL इनकी लेखनी का उद्देश्य-सामाजिक बुराइयों को दूर करने के साथ-साथ देशभक्ति भावना को विकसित करना हैL पसंदीदा हिन्दी लेखक-प्रेमचन्द जी हैंL विशेषज्ञता-पढ़ाना एवं कविता लिखना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“हिंदी हमारे देश का एक अभिन्न अंग है। यह राष्ट्रभाषा के साथ-साथ हमारे देश में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। इसका विकास हमारे देश की एकता और अखंडता के लिए अति आवश्यक है।

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