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अनोखी संस्कृति ‘मकर संक्रांति’

दिनेश चन्द्र प्रसाद ‘दीनेश’
कलकत्ता (पश्चिम बंगाल)
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मकर संक्रांति, पोंगल व लोहड़ी,
भोगली बिहू, माघ बिहू, खिचड़ी।

कहीं पौष संक्रांति और मकर संक्रमणा,
पेडा पनडुया, मकरा बियालू व उत्तरायणा।

अलग-अलग है नाम गोडवा भोगी,
सभी मनाकर रहते स्वस्थ निरोगी।

भारत वर्ष की है यह अनोखी संस्कृति,
भिन्न-भिन्न रूप में मनाते मकर संक्रांति।

आज के दिन मकर राशि में जाता सूर्य,
आज के दिन ही उत्तरायण होता सूर्य।

तिल, गुड़ और तिलकुट का होता मेल,
संग जमता चूड़ा दही का होता है खेल।

लाई, बन्हुई, रेवड़ी और मिठाई,
सब मिल-बांटकर खाते हैं भाई।

आलू, गोभी, मटर के संग सेम,
स्नान-ध्यान, पूजा-पाठ और नेम।

गंगा नहाते करते सूर्य की प्रदक्षिणा,
रुपया-पैसा व तिल देते दान- दक्षिणा।

पतंग उत्सव में उड़ाते हैं सभी पतंग,
बच्चे-बूढ़े सब खुश होते हैं मलंग।

हर साल लगता मेला गंगा सागर में,
पुण्य भर-भर कर हैं लाते गागर में।

पहले होता हर साल १४ जनवरी को,
अब एक दिन बढ़ता १५ जनवरी को।

हिंदुस्तान के पूरब से लेकर पश्चिम तक,
आर्यावर्त के उत्तर से लेकर दक्षिण तक।

‘दीनेश’ आज पूरा देश एक हो जाता है,
अपने-अपने ढंग से यह पर्व मनाता है॥

परिचय– दिनेश चन्द्र प्रसाद का साहित्यिक उपनाम ‘दीनेश’ है। सिवान (बिहार) में ५ नवम्बर १९५९ को जन्मे एवं वर्तमान स्थाई बसेरा कलकत्ता में ही है। आपको हिंदी सहित अंग्रेजी, बंगला, नेपाली और भोजपुरी भाषा का भी ज्ञान है। पश्चिम बंगाल के जिला २४ परगाना (उत्तर) के श्री प्रसाद की शिक्षा स्नातक व विद्यावाचस्पति है। सेवानिवृत्ति के बाद से आप सामाजिक कार्यों में भाग लेते रहते हैं। इनकी लेखन विधा कविता, कहानी, गीत, लघुकथा एवं आलेख इत्यादि है। ‘अगर इजाजत हो’ (काव्य संकलन) सहित २०० से ज्यादा रचनाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। आपको कई सम्मान-पत्र व पुरस्कार प्राप्त हुए हैं। श्री प्रसाद की लेखनी का उद्देश्य-समाज में फैले अंधविश्वास और कुरीतियों के प्रति लोगों को जागरूक करना, बेहतर जीवन जीने की प्रेरणा देना, स्वस्थ और सुंदर समाज का निर्माण करना एवं सबके अंदर देश भक्ति की भावना होने के साथ ही धर्म-जाति-ऊंच-नीच के बवंडर से निकलकर इंसानियत में विश्वास की प्रेरणा देना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-पुराने सभी लेखक हैं तो प्रेरणापुंज-माँ है। आपका जीवन लक्ष्य-कुछ अच्छा करना है, जिसे लोग हमेशा याद रखें। ‘दीनेश’ के देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-हम सभी को अपने देश से प्यार करना चाहिए। देश है तभी हम हैं। देश रहेगा तभी जाति-धर्म के लिए लड़ सकते हैं। जब देश ही नहीं रहेगा तो कौन-सा धर्म ? देश प्रेम ही धर्म होना चाहिए और जाति इंसानियत।