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अन्तर्मन से छोड़ दिया

हरिहर सिंह चौहान
इन्दौर (मध्यप्रदेश )
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कल्पनाओं की इस उड़ान में
उड़ता जा रहा हूँ में,
कदम लाख बहकते हैं मेरे
पर इसे थाम लेता हूँ मैं
अन्तर्मन से साथ तेरा छोड़ दिया है मैंने,
तेरे लिए जीए जा रहा हूँ।

इतना प्यार रहा तेरे और मेरे बीच में,
पर ना जाने किसकी नज़र लग गई
बहुत सहा लोगों का यह सितम,
पर क्या करूं अन्तर्मन से साथ तेरा छोड़ दिया है।

सपनों के इस जहां में,
कल्पनाओं की उड़ान लिए
हम प्रेम का दीपक जला रहे हैं,
पर ना जाने दीपक क्यों बुझ गया
अन्तर्मन से साथ तेरा छोड़ दिया मैंने,
तेरे लिए जीए जा रहा हूँ मैं।

मोहब्बत के इस जहां में,
हम प्रेम बांट रहे थे
पर ना जाने कैसा तूफान आया
दुनिया तबाह हो गई
कल्पनाओं की इस उड़ान में
उड़ता जा रहा हूँ मैं,
कदम लाख बहकते हैं मेरे,
पर उसको थामे हुए हूँ मैं।
अन्तर्मन से साथ तेरा छोड़ दिया मैंने,
तेरे लिए जीए जा रहा हूँ मैं॥