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अपने-आप

डोली शाह
हैलाकंदी (असम)
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आज मैं आँगन में बैठे नदी की लहरों को यूँ ही निहार रही थी। उन्हें देखकर ऐसा एहसास हो रहा था कि, कितना कुछ झेलती हैं ये आखिर!

इतने में पीछे से ‘राम-नाम सत्य है’ की ध्वनि… नजरें हटा कर देखा तो अपने-आपमें दंग रह गई। साथ जा रहे लोगों को देख सोचा कि, डॉन की माँ होगी, लेकिन कुछ क्षण बाद ही गुजरते हुए लोगों के मुँह से ‘इतनी हट्ठी-कट्ठी महिला और अचानक यह घटना…’… ‘अरे सप्ताह पहले तक तो बिल्कुल ठीक थी,
…हाँ, शायद कुछ हुआ होगा!’
‘…अरे, सारा दिन तो मोबाइल पर लगी रहती थी।’
यह सुनकर मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ,
‘….किसकी मृत्यु हुई है ?’
‘… डॉन की पत्नी अंजलि की।’
‘…क्या! वो बिल्कुल ठीक तो थी।’
‘…हाँ, इसलिए तो शंका हो रही है!’
मैं भी दो पल निहारती रही। इसमें तो उसके बच्चे भी नहीं!
लाश तो गुजर गई, पर मेरे अंदर प्रश्नों के भंवर शांत नहीं हुए। मैंने उसकी एक जानकार दोस्त से फोन कर जानने की कोशिश की, इतने में पत्नी सोनी ने फोन उठाया,
“हैलो, क्या मैं रोहित से बात कर सकती हूँ ?”
“जी, आप कौन ?”
“प्लीज, मुझे उनसे कुछ काम है, उनसे बात करवा दीजिए।”
“..सॉरी।”
अगले दिन दफ्तर से रोहित ने उसे कॉल किया “जी आपने कल कॉल किया था ?”
“…जी, आप रोहित हैं क्या ?”
“जी, मैं ही हूँ, कहिए।”
“…दरअसल, मुझे आपसे कुछ जानना था।”
“…जी कहिए।”
“…क्या आप अंजलि चौरसिया को जानते थे ?”
“…हाँ, थे मतलब हम दोनों बहुत अच्छे दोस्त हैं, वो मेरे बिना एक पल भी नहीं रह सकती थी, लेकिन कुछ पारिवारिक उलझनों के कारण पिछले सप्ताह से किसी को किसी की खबर नहीं थी, लेकिन हम दोनों एक-दूसरे को बहुत प्यार करते हैं।”
‘…सच्ची, सोचकर देखिए! क्या खूब प्यार निभाया आपने! अंजलि अब नहीं रही इस दुनिया में…।”
“…क्या!! ऐसा नहीं हो सकता ! वह मुझे छोड़कर नहीं जा सकती!!”
“सच्ची, जब आप जानते थे कि, वह आपके बिना नहीं रह सकती तो पिछले एक सप्ताह यानी १६८ घंटे में आपको १ मिनट का वक्त नहीं मिला, जो आप उसे सांत्वना के दो शब्द बोल सके!! कैसा प्यार था ये ? खैर, आप जैसे कुछ बुद्धिजीवियों के कारण ही ‘प्यार’ जैसा पवित्र शब्द बदनाम हो जाता है, धिक्कार है आपको…!! मगर मैं यह सब बातें आप ही को क्यों कह रही हूँ!! आप जैसे लोग तो हर गली-मोहल्ले में सैकड़ों मिल जाएंगे..।” इतना कह उसने फोन रख दिया।

घंटों सोचती रही, महीने के अंदर ही २ जीते-जागते उदाहरण… चूंकि, वह एक समाज सुधारक भी थी। अपने-आपसे बातें करते हुए, बस अब नहीं…, बहुत हो गया। अब वह अलग-अलग सम्मेलनों-गोष्ठियों में जाकर अपनी महत्ता को समझाते हुए सर्वप्रथम अपने-आपको अपना साथी बनने की सलाह देती, महिलाओं-लड़कियों को सर्वप्रथम अपने-आपसे प्रेम करने को कहने लगी। और सचमुच उसके इस प्रयास से उसने ना केवल अपनी नजरों में, बल्कि एक छोटे से समाज में भी अपनी सोच से प्रसिद्धि भी पाई।