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अब हिंद के जवान जाग रे

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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तुझे पुकारती मातु भारती,
अब हिंद के जवान जाग रे।
ध्वजा तिरंगा बनो सारथी,
गाओ राष्ट्र गीत शुभ राग रे॥

अरिमर्दन कर पाक चीन की,
करो भारत माँ अनुराग रे।
करो नमन उन हर बलिदानी,
जो सीमान्त खड़े सहभाग रे।

शीताकुल ग्रीष्मातप भीगी,
निशिदिन काया बरसात रे।
तजा मोह परिवार कुटुम्बी,
खातिर राष्ट्र सकल जज़्बात रे।

आन बान सम्मान भारती,
तन मन अर्पण वीर जवान रे।
अरुणाचल से द्रास गलेशियर,
कर नाथुला विजय लद्दाख रे।

सुखद चैन मुस्कान प्रजा की,
नित बन ढाल कवच जवान रे।
महावीर वह विश्व शक्ति अब,
जय हिन्द वतन अभिमान रे।

चहुँ दिशा प्रगति नित सोच नयी,
स्वाभिमान देश गुलज़ार रे।
रणयोद्धा सैनिक महारथी,
विजय पार्थ सार्थ उपहार रे।

अमरगीत गाथा बलिदानी,
लिखी विजय राष्ट्र प्रतिमान रे।
शत्रु दलन कर खेल-खेल में,
बेपरवाह ज़ान जवान रे।

जयमाला रण विजय भारती,
मुण्डमाल शहीदी शान रे।
अरुणाभ कीर्ति अनमोल भक्ति,
भानु चन्द्र ज्योति सुखसार रे।

जन गण मन अधिनायक गाती,
चहुँदिक् सीमा नित सेना रे।
हर जवान का जन-मन भारत,
है कृतज्ञ विनत निशि रैना रे।

उन्मुक्त उड़ानें भरता नभ,
संविधान तिरंगा मान रे।
लोकतंत्र जीवन रक्षक बन,
रहे हर जवान भगवान रे।

इतिहास स्वर्ण इस आजादी,
चारुतम त्याग शौर्य जवान रे।
अमृत वर्ष स्वाधीन भारती,
मनाऍं विजयोत्सव महान रे।

हर जवान सीमांत भारती,
हम करें आरती विधान रे।
हो समता मूलक नर नारी,
सद्ज्ञान प्रगति पद मान रे।

हम निर्भय संबल नित विजयी,
शस्य पूर्ण खेत खलिहान रे।
हर प्रकृति आपदा तूफ़ानी,
संकटमोचक नित जवान रे।

धन्य-धन्य पा पूत भारती,
भारत कर्णधार जवान रे।
रखी लाज माँ कोख दूध की,
उन सपूत नमन यशगान रे॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥

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