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अभी भी कैद है स्त्री…

संजय सिंह ‘चन्दन’
धनबाद (झारखंड )
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आज भी नज़र बंद है स्त्री,
पुरूष जाल में बंधी है स्त्री
प्यार के झूठे मलाल में है स्त्री
विवशता के जंजाल में है स्त्री।

धन-दौलत, शोहरते धमाल में है स्त्री,
अंततः पुरुष के मायाजाल में है स्त्री
प्रेम और यौवन के भ्रमजाल में है स्त्री,
खुशियाँ लुटाकर भी बवाल में है स्त्री।

प्रेम विवाह से भी फटेहाल में है स्त्री,
जिन्दगी की वाकिफ खस्ता हाल है स्त्री
शिक्षा की ऊँचाई पर बदहाल है स्त्री,
गाढ़ी कमाई पर भी बुरे हाल है स्त्री।

युग बोध की दस्तक, आज न खुशहाल है स्त्री,
ऐतिहासिक अज्ञानता के युग में मिसाल थी स्त्री
अधिकार, सुरक्षा, युद्ध कौशल में बेमिसाल थी स्त्री,
उस युग में वास्तविक प्रेम का भँवर-जाल थी स्त्री।

अनपढ़, कुरूप, फूहड़, गँवार भी झँकार थी स्त्री,
परस्पर आस्था-विश्वास से सदाबहार थी स्त्री
कैद होकर भी खुशियों में मालामाल थी स्त्री,
नारी मर्यादा, रिश्तों के ख्याल में कमाल थी स्त्री।

बदला जमाना अब, युग भी बदल गया,
घूँघट हटा, पर्दा-बेपर्दा का पल गया
चेहरे पे चेहरा दिखा, दिल मचल गया,
यौवन है हर शख्स पर दिल फिसल गया।

प्यार-मुहब्बत, इश्क़, वफा, दगा पूरा बदल गया,
सपना दिल का अब तो, आँसुओं में बह गया
पैसे में पुरूष से स्त्री कम नहीं, हाँ ख्वाब ढह गया,
हर रोज तलाक़ से स्त्री का मुकद्दर समुंदर में बह गया।

कहाँ दर्द ? शौहर अलग-बेगम अलग, बच्चा यतीम हो गया,
शौहर को नई आशिक से फिर निकाह कबूल हो गया।
कई बेगमों से तलाक़ शौहरों का उसूल हो गया,
क्या स्त्री, क्या पुरुष, क्या हिंदू, क्या ईसाई, क्या मुस्लिम हर कोई इस घिनौने पाश्चात्य में मशगूल हो गया…?

परिचय-सिंदरी (धनबाद, झारखंड) में १४ दिसम्बर १९६४ को जन्मे संजय सिंह का वर्तमान बसेरा सबलपुर (धनबाद) और स्थाई बक्सर (बिहार) में है। लेखन में ‘चन्दन’ नाम से पहचान रखने वाले संजय सिंह को भोजपुरी, संस्कृत, हिन्दी, खोरठा, बांग्ला, बनारसी सहित अंग्रेजी भाषा का भी ज्ञान है। इनकी शिक्षा-बीएससी, एमबीए (पावर प्रबंधन), डिप्लोमा (इलेक्ट्रिकल) व नेशनल अप्रेंटिसशिप (इंस्ट्रूमेंटेशन डिसिप्लिन) है। अवकाश प्राप्त (महाप्रबंधक) होकर आप सामाजिक कार्यकर्ता, रक्तदाता हैं तो साहित्यिक गतिविधि में भी सक्रियता से राष्ट्रीय संस्थापक-सामाजिक साहित्यिक जागरुकता मंच मुंबई (पंजी.), संस्थापक-संरक्षक-तानराज संगीत विद्यापीठ (नोएडा) एवं राष्ट्रीय प्रवक्ता के.सी.एन. क्लब (मुंबई) सहित अन्य संस्थाओं से बतौर पदाधिकारी जुड़ें हैं, साथ ही पत्रकारिता का वर्षों का अनुभव है। आपकी लेखन विधा-गीत, कविता, कहानी, लघु कथा व लेख है। बहुत-सी रचनाएँ पत्र-पत्रिका में प्रकाशित हैं, साथ ही रचनाएँ ४ साझा संग्रह में हैं। ‘स्वर संग्राम’ (५१ कविताएँ) पुस्तक भी प्रकाशित है। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में आपको
महात्मा बुद्ध सम्मान-२०२३, शब्द श्री सम्मान-२०२३, पर्यावरण रक्षक सम्मान-२०२३, श्रेष्ठ कवि सम्मान-२० २३ सहित अन्य सम्मान हैं तो विशेष उपलब्धि-राष्ट्रीय कवि सम्मेलन में कई बार उपस्थिति, देश के नामचीन स्मृति शेष कवियों (मुंशी प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, भारतेंदु हरिश्चंद्र आदि) के जन्म स्थान जाकर उनकी पांडुलिपि अंश प्राप्त करना है। श्री सिंह की लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी भाषा का उत्थान, राष्ट्रीय विचारों को जगाना, हिन्दी भाषा, राष्ट्र भाषा के साथ वास्तविक राजभाषा का दर्जा पाए, गरीबों की वेदना, संवेदना और अन्याय व भ्रष्टाचार पर प्रहार है। मुंशी प्रेमचंद, अटल बिहारी वाजपेयी, जयशंकर प्रसाद, भारतेंदु हरिश्चंद्र, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर, किशन चंदर और पं. दीनदयाल उपाध्याय को पसंदीदा हिन्दी लेखक मानने वाले संजय सिंह ‘चंदन’ के लिए प्रेरणापुंज- पूज्य पिता जी, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, महात्मा गॉंधी, भगत सिंह, लोकनायक जय प्रकाश, बाला साहेब ठाकरे और डॉ. हेडगेवार हैं। आपकी विशेषज्ञता-साहित्य (काव्य), मंच संचालन और वक्ता की है। जीवन लक्ष्य-ईमानदारी, राष्ट्र भक्ति, अन्याय पर हर स्तर से प्रहार है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“अपने ही देश में पराई है हिन्दी, अंग्रेजी से अंतिम लड़ाई है हिन्दी, अंग्रेजी ने तलवे दबाई है हिन्दी, मेरे ही दिल की अंगड़ाई है हिन्दी।”