प्रो. लक्ष्मी यादव
मुम्बई (महाराष्ट्र)
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वेदिका अपने परिवार के साथ बहुत खुश थी। उसके परिवार में १ बेटा और १ बेटी थी। पति अनुज बिज़नेसमैन थे, तो वेदिक़ा भी सरकारी बैंक में नौकरी करती थी। सभी अपने-अपने कामों में व्यस्त रहते थे। बेटा कुणाल कॉलेज में था, तो बेटी स्कूल में दसवीं में पढ़ती थी। माता-पिता के साथ बच्चे भी घर आने पर अपने-अपने काम में लग जाते और जो समय मिलता, उसमें मोबाइल फोन का उपयोग करते। वेदिका नौकरी से आती, तो तुरंत किचन में खाना पकाने चली जाती। पति ऑफिस से आते तो मोबाइल लेकर बैठ जाते। मोबाइल को लेकर बहुत बार दोनों में काफी अनबन भी होती, लेकिन पति और बच्चों में इसे लेकर कोई परिवर्तन नहीं आया। देखते-देखते कुछ साल बीत गए। वेदिका बहुत परेशान होने लगी, क्योंकि कोई भी घर के कामों में हाथ नहीं बंटाता था। बेटी को कुछ काम बोलती, तो अनुज वेदिका को ही चुप करा देता और कहता-“मेरी लाड़ली काम करेगी, तो तुम क्या करोगी ?”
कोई भी वेदिका की बात न सुनता। बच्चे भी कहते-“मम्मी तुम करती क्या हो ?” बात-बात पर अनुज बच्चों के सामने ही वेदिका को डाँट देता। वह अपमान का घूँट पीकर रह जाती, कुछ न कहती।
समय बीतता गया तो अनुज वेदिका से कटा-कटा सा रहने लगा। दोनों आपस में बात कम, झगड़ा ज़्यादा करते। बचच्चों को भी इसकी अब आदत-सी हो गई थी। देखते- देखते कुछ महीने बीत गए। वेदिका चिंता में रहने लगी। उसका मन काम में भी नहीं लगता, वह दिन-रात इसी सोच में डूबी रहती कि, जिनके लिए मैं दिन-रात मेहनत करती हूँ, घर से लेकर ऑफिस तक सारे काम करती हूँ, वही बच्चे और पति मुझे बोलते हैं-तुम करती क्या हो ?”
एक दिन अचानक वेदिका के ऑफिस से अनुज को फ़ोन जाता है कि, आप जहां कहीं भी हो, तुरंत अस्पताल पहुँचिए। आपकी पत्नी को दिल का दौरा आया है, वह बहुत गंभीर है। आई.सी.यू. में रखा है। अनुज तुरंत ऑफिस से निकलता है और अस्पताल पहुँचता है, लेकिन बहुत देर हो चुकी थी। अनुज डॉक्टर से पूछता रहा, लेकिन उनसे ये दुखद समाचार बोलने की हिम्मत नहीं हो रही थी। जैसे ही डॉक्टर ने बताया कि, आपकी पत्नी इस दुनिया में नहीं रही, मानो धरती-पाताल फट गए हों। अनुज और दोनों बच्चे चीखने-चिल्लाने लगे, ज़ोर-ज़ोर से रोने लगे…। कहने लगे-“माँ हम आपकी सारी बात मानेंगे, आप जो कहोगे, हम करेंगे। हमें माफ़ कर दो माँ…आप आ जाओ… माँ…।”
अनुज और बच्चे ज़ोर-ज़ोर से रोने-बिलखने लगे। उन्हें अपनी गलती का अहसास हो रहा था, लेकिन होनी को कौन टाल सकता है! समय रहते ही रिश्तों का सम्मान नहीं करने, रिश्तों की अहमियत को नहीं समझने, माता-पिता की बात नहीं मानने और पत्नी का सम्मान नहीं करने का फल सामने आ चुका था।