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आँख उठाने की जुर्रत मत करना

हेमराज ठाकुर
मंडी (हिमाचल प्रदेश)
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उत्तुंग शिखर नीरव हिमालय की वादियाँ,
भय खाकर कोलाहल से घबराती है
ये टोली दर टोली भीड़ उमड़ती,
हिमालय में क्या करने आती है ?

सरहदी सीमाओं को आज सजाने,
सैन्य टुकड़ियाँ धड़ाधड़ जाती है
रोम-रोम में उनके रंगत निखरी,
स्वधर्म-हर्ष गर्व से चौड़ी छाती है।

सैनिक कहता दूसरे से प्रियवर,
चल, माँ भारती हमें बुलाती है
शौर्य सिमटता कदमों में उनके,
चंचल चालें तो है ही मदमाती है।

मदहोश है ऐसे देश प्रेम से,
मानो, मित्र विवाह के बराती हैं
गूंज उठती है घाटियाँ तब-जब,
आवाजें उनकी झुंझलाती है।

थर्राती है रूहें अरि की,
बुद्धि भी विक्षिप्त-सी हो जाती है।
सीना ठोंक जब वीर जवानों की,
गर्जना रौरव-रौद्र मचाती है।

लहलहाती श्यामल फसलें जैसे,
मौसम के साथ, खेतों में उग आती है
है वही नजारा सीमा पे आज तो,
यह भव्य भारत देश की माटी है।

लहू से सींचते वीर शहीद जब,
यह नए वीर तब उगाती है
हिम्मत की ऊंचाई के आगे उनकी,
आज, बौनी हिमालय की घाटी है।

चट्टानी वक्ष, भुजदण्ड फौलादी,
हर इरादे पक्के और दिमागी है
एक इंच न देंगे लूटने उनको,
सागर की तलहटी, चाहे गलवान की वादी है।

वे अपने देश में आजाद रहें,
हमें अपने देश की आजादी है।
आँख उठाने की जुर्रत मत करना,
फिर तो हृदय विदारक बर्बादी है॥

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