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आखिरी पन्ना दुर्लभ जीवन

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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आखिरी पन्ना दुर्लभ जीवन, बेताब आज मैं लेखन हूँ
क्या पाया-क्या खोया जीवन, अन्तर्मन उद्वेलित चिन्तन हूँ।

भागम-भाग सीदित यायावर, संघर्ष सफल क्या सत्पथ हूँ
कर्मवीर बन कर्म निर्वहण, सत्य सबल संयमित अधिरथ हूँ।

मृगतृष्णा फँस सांसारिक मन, क्या सफल ध्येय हो पाया हूँ
राष्ट्र-धर्म सब जन सुख खुशियाँ, मुख मुस्कानें भर आया हूँ।

सहनशीलता साहस विपदा, संवेदनशील बन पाया हूँ
परमारथ पौरुष रत-अविरत, मानवता रख पाया हूँ।

लावारिस सड़कों पर निशदिन , हमदर्द मदद कर पाया हूँ।
अधिकार मुदित कर्त्तव्य सुपथ , धर्मार्थ स्वयं गढ़ पाया हूँ।

नारी का सम्मान ज्ञान में, क्या योगदान दे पाया हूँ
लिखता हूँ मैं जीवनभर से, पर पन्नों को भर पाया हूँ।

वर्षों की अनुभूति साथ ले, आखिरी पन्ना लिख पाया हूँ
मधुरित जीवन बन सुगंध चहुँ, मकरन्द कुसुम बन पाया हूँ।

आओ गान करें हम अनुभव, आखिरी पन्ना शेष बचाया हूँ।
सत्य अहिंसा प्रेम शान्ति जल, क्या अवगाहन कर पाया हूँ।

भारत माँ के चरण अश्रु जल, सम्मान दान दे पाया हूँ
आखिरी पन्ना कठिन लेखनी, वक्त अल्प रख पाया हूँ।

धन्य ईश-गुरु मातु-पिता ऋण, क्या विनत भाव चुकाया हूँ।
गाथा स्वर्णिम यादों में पल, आखिरी पृष्ठ लिख पाया हूँ॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥