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आओ मिलकर बैठें हम सब

हेमराज ठाकुर
मंडी (हिमाचल प्रदेश)
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पूर्वांचल के जवानों को देखो, क्या से क्या होने आए हैं ?
जिन हाथों में किताबें होनी थी, उन्होंने हथियार उठाए हैं।

यह समुदायों की जाति दुश्मनी है, या किसी ने ये लड़ाए हैं ?
बेखौफ दरिंदगी दिखाते हैं, निर्वस्त्र घुमाई जाती बेटी-माँएं हैं।

सीमा गाँव की सरहद बनी है, गबरु हिफाजत में लगाए हैं,
आगजनी और मारधाड़ ने, नागा, मैतेई, कूकी सभी डराए हैं।

दहशत है चारों ओर वहां पर, सुख-चैन सभी का छीना है,
ऐसे भयावह वातावरण में, बड़ा मुश्किल किसी का जीना है।

यहाँ सियासत घनी है, वहाँ आक्रोशित, बेबस आगजनी है,
मीडिया में निरे सवाल उठे हैं, आखिर सरकारें क्यों बनी है ?

इस्तीफे की मांग है, पक्ष-विपक्ष में हो रही है बस थोपा-थोपी,
झुलसती हमेशा जनता है, सियासतदान तो सेंकेंगे ही रोटी।

यह आज नहीं, कई बार हुआ है, हर राज में होता आया है,
इतिहास गवाह है, दो के झगड़े में, तीसरे ने लाभ उठाया है।

आओ मिलकर बैठें हम सब, प्यार-प्रेम से बात सुलझाते हैं,
सम्पत्ति विवाद में औरों को घुसाना, वे तो बात उलझाते हैं॥