कुल पृष्ठ दर्शन : 247

You are currently viewing लालच

लालच

दिनेश चन्द्र प्रसाद ‘दीनेश’
कलकत्ता (पश्चिम बंगाल)
*******************************************

सेठ हजारीमल अपनी लड़की की शादी सेठ दीनदयाल के लड़के के साथ करने के लिए बातचीत करने आए। बहुत सारा दान-दहेज और नगद रुपयों का लालच देकर सेठ हजारीमल ने सेठ दीनदयाल को राजी कर लिया। ₹३ लाख नगद और बहुत सारे सामान के लालच में आकर सेठ दीनदयाल कुछ भी बोल ना सके। बिना लड़की देख उन्होंने हाँ कर दी। कुछ अपने ही लोगों ने उनसे कहा था कि, लड़की मिलनसार, रहनदार और घर के हर काम-काज में निपुण है।
शादी के दिन सेठ हजारी मल ने अपने वादे के मुताबिक जो सामान कहा था, वह नहीं दिया। लड़की भी कम पढ़ी-लिखी निकली, जबकि हजारीमल ने प्रमाण-पत्र दिखाकर कहा था कि लड़की बी.ए. में पढ़ रही है। देखने-सुनने में भी उतनी खूबसूरत न थी, जितना बताया गया था। उसे ठीक से खाना बनाने का ढंग भी नहीं था। वह ‘दिन भर चले अढाई कोस’ की तरह धीमी और सुस्त थी।
शादी में जो नगद रुपया मिला था, सब शादी में खर्च हो गया। मुहल्लेभर के लोग कहने लगे-“पैसे के लालच में सेठ जी कैसी बहू लाए हैं ! पैसा तो खत्म हो गया, बहू तो सारा जीवन रहेगी। लोग पैसा तो नहीं, बहू ही देखते हैं।”
यह सब बातें सुन-सुनकर सेठ दीनदयाल अपना माथा पीट रहे थे। अपने-आपको कोस रहे थे। मैंने ऐसा क्यों किया ? लालच में आने वाले सेठ जी और पछता रहे थे, लेकिन अब पछताने से क्या होगा ?, जब सारे समाज में जग-हँसाई हो गई।

परिचय– दिनेश चन्द्र प्रसाद का साहित्यिक उपनाम ‘दीनेश’ है। सिवान (बिहार) में ५ नवम्बर १९५९ को जन्मे एवं वर्तमान स्थाई बसेरा कलकत्ता में ही है। आपको हिंदी सहित अंग्रेजी, बंगला, नेपाली और भोजपुरी भाषा का भी ज्ञान है। पश्चिम बंगाल के जिला २४ परगाना (उत्तर) के श्री प्रसाद की शिक्षा स्नातक व विद्यावाचस्पति है। सेवानिवृत्ति के बाद से आप सामाजिक कार्यों में भाग लेते रहते हैं। इनकी लेखन विधा कविता, कहानी, गीत, लघुकथा एवं आलेख इत्यादि है। ‘अगर इजाजत हो’ (काव्य संकलन) सहित २०० से ज्यादा रचनाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। आपको कई सम्मान-पत्र व पुरस्कार प्राप्त हुए हैं। श्री प्रसाद की लेखनी का उद्देश्य-समाज में फैले अंधविश्वास और कुरीतियों के प्रति लोगों को जागरूक करना, बेहतर जीवन जीने की प्रेरणा देना, स्वस्थ और सुंदर समाज का निर्माण करना एवं सबके अंदर देश भक्ति की भावना होने के साथ ही धर्म-जाति-ऊंच-नीच के बवंडर से निकलकर इंसानियत में विश्वास की प्रेरणा देना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-पुराने सभी लेखक हैं तो प्रेरणापुंज-माँ है। आपका जीवन लक्ष्य-कुछ अच्छा करना है, जिसे लोग हमेशा याद रखें। ‘दीनेश’ के देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-हम सभी को अपने देश से प्यार करना चाहिए। देश है तभी हम हैं। देश रहेगा तभी जाति-धर्म के लिए लड़ सकते हैं। जब देश ही नहीं रहेगा तो कौन-सा धर्म ? देश प्रेम ही धर्म होना चाहिए और जाति इंसानियत।