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आज भी वो…

सच्चिदानंद किरण
भागलपुर (बिहार)
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शाम हुई दिन की,
उड़न बसेरा चुनमुन करती,
कलरव में गौधूली की
शांति को गुंजायमान करती,
हरी-भरी प्रकृति के
पर्यावरण को,
मधुरम वसुंधरा को
शोभित करती बैठ जाती,
एक-एक कर डाली,
अपनी सलिष्ठ शिष्टता
निभाती सुबह होने तक।

आज भी वो,
कितनी निष्ठावान
कितनी शिष्टावान‌ है,
छोटी-सी चिड़िया रानी
उसमें कोई बैर-भाव नहीं,
जीती है
वो जिंदगी अपनी मनमौजी में,
बच्चों संग स्वावलंबी
स्नेहशील पराधीन,
सपनों-सा मिल-जुल।

ज्ञान है खुद निर्वाहन की,
दर्द भी है उससे
लेकिन शोक में भी,
मिठास है हम-सी नहीं
कार्य धैर्यता की,
सहिष्णुता में समाधान है
उकुलाहट में नहीं,
परम संतोषी है
लोभ-मोह की तनिक भी,
छाँह ही नहीं हम-सी।

उन्मुक्त गगन है,
शून्यता में विश्वास है
अथाह प्रेम का सागर,
है उमड़ता स्वाभिमानी
आस्था में अविरल,
ब्रह्मांड के अनंत
क्षितिज तरुवर की।
गहराई में निश्चल और,
निरंकारी स्वरूप में॥

परिचय- सच्चिदानंद साह का साहित्यिक नाम ‘सच्चिदानंद किरण’ है। जन्म ६ फरवरी १९५९ को ग्राम-पैन (भागलपुर) में हुआ है। बिहार वासी श्री साह ने इंटरमीडिएट की शिक्षा प्राप्त की है। आपके साहित्यिक खाते में प्रकाशित पुस्तकों में ‘पंछी आकाश के’, ‘रवि की छवि’ व ‘चंद्रमुखी’ (कविता संग्रह) है। सम्मान में रेलवे मालदा मंडल से राजभाषा से २ सम्मान, विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ (२०१८) से ‘कवि शिरोमणि’, २०१९ में विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ प्रादेशिक शाखा मुंबई से ‘साहित्य रत्न’, २०२० में अंतर्राष्ट्रीय तथागत सृजन सम्मान सहित हिंदी भाषा साहित्य परिषद खगड़िया कैलाश झा किंकर स्मृति सम्मान, तुलसी साहित्य अकादमी (भोपाल) से तुलसी सम्मान, २०२१ में गोरक्ष शक्तिधाम सेवार्थ फाउंडेशन (उज्जैन) से ‘काव्य भूषण’ आदि सम्मान मिले हैं। उपलब्धि देखें तो चित्रकारी करते हैं। आप विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ केंद्रीय कार्यकारिणी समिति के सदस्य होने के साथ ही तुलसी साहित्य अकादमी के जिलाध्यक्ष एवं कई साहित्यिक मंच से सक्रियता से जुड़े हुए हैं।

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