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व्यथा भारतमाता की

राजू महतो ‘राजूराज झारखण्डी’
धनबाद (झारखण्ड) 
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दोस्तों,सपने में १५ अगस्त २०१९ की सुबह हो गई है। हमें आजाद हुए ७२ वर्ष पूरे हुए। चारों ओर लोग एक-दूसरे को बधाईयाँ देते,झण्डा फहराते,गीत गाते हुए इसकी खुशियाँ मना रहे हैं। सही है दोस्तों,हमें खुशी होनी भी चाहिए,क्योंकि फ़िरंगी यहाँ से भाग चुके हैं। हमें अपना अधिकार मिल चुका है,हम आजादी से अपना काम करने लग गये हैं। आज हम अपनी सरकार खुद चुनते हैं, सरकारी योजनाओं का लाभ खूब लेते हैं। अपनी इच्छानुसार पढ़-लिख,खेल एवं कार्य भी कर सकते हैं।
मैं भी सभी के समान खुश और आजादी की मस्ती में घर से निकला। दोस्तों को बधाई देते हुए आगे बढ़ता जा रहा था। मन में उमंग थी, मस्तिष्क शान्त,विचारों में आजादी का गुमान आँखों में तिरंगे की शान थी। कुछ ही दूरी तय करने के बाद मुझे किसी स्त्री के रोने का आभास हुआ। मैंने चारों ओर देखा,कहीं कुछ न दिखा। पुनः कुछ समय बाद वही आभास हुआ। अब मैं पूर्ण रूप से रूक कर ध्यान से चारों ओर देखने लगा।
गम्भीरता से देखने पर पाया कि यह आवाज ‘भारतमाता’ की है। मुझे आश्चर्य हुआ। मैंने मन ही मन माता को प्रणाम कर पूछा कि-“आज आप आजाद हैं,आपकी संतान ऊँचे पदों पर आसीन है,विदेशों में हमारा सम्मान है,हमें भी भारतीय होने का गुमान है,फिर माते आपकी आँखों में आँसू क्यों ?”
दोस्तों,माता का जबाब सुन मेरे पैरों तले से मानों जमीन ही खिसक गई। माता बोलीं-“७२ साल पहले मैं एक देश की गुलाम थी,पर आज कई की हूँ।” जवाब सुन मैं हँसा। फिर सोचा कहीं बावली तो नहीं हो गई यह। फिर भी जबाब का सम्मान करते हुए मैंने पूछा-‘कैसे ?’
माता बोली-“फ़िरंगी तो चले गये,पर आज मैं गुलाम हो गई भ्रष्टाचार की,प्रदूषण की, बेरोजगारी की,गंदगी की,स्वार्थ की,जातिवाद की,मतवाद की,पूँजीवाद की,नशे की,अहंकार की…।” दोस्तों इतना कहते-कहते वह रो पड़ी,आगे बोल न पायी।
फिर शान्त हो बोलीं-“यह वही भारत है, जहाँ ॠषि-मुनियों का वास था। यहाँ युद्ध में भी नियमों का पालन होता था,पर आज नियमों में भी युद्ध होता है। सभी जाति-धर्म में मेल था,पर आज कोई अपनों पर भी विश्वास नहीं कर पाता। पहले तालाबों का पानी पीने योग्य था,आज कुँए का भी नहीं रहा। पहले शासक प्रजा की केवल शंका पर प्रिय का त्याग कर देता था,पर अब सत्ता के लिए अपनों का खून करने में भी नहीं हिचकते,पहले माता-पिता एवं गुरूजनों के संकेत मात्र से राज्य या शरीर का त्याग कर देता था,पर अब अपने हित के लिए उन्हें ही रास्ते से हटाने में नहीं हिचकते। पहले याचक को दान देकर खुद दरिद्र होकर भी खुश होते थे,पर अब दूसरों को भिखारी बनाकर खुश होते हैं,पहले राजा एवं कर्मचारी जरूरतमंद प्रजा के पास जाकर उसकी मदद करते थे, अब जरूरतमंद अधिकारियों के पास जाकर उसे मदद के लिए रिश्वत भी देने को बाध्य हैं। एक पशु भी किसी को बेवजह तंग नहीं करता,पर आज मनुष्य मनुष्य को नहीं छोड़ता। संतान को माता-पिता की परवाह नहीं,शिष्य को गुरु की कद्र नहीं,शासक को प्रजा की चिंता नहीं…।”
मैंने रोकते हुए कहा-“बस माते,मैं समझ गया और सुनने की ताक़त मुझमें नहीं है”… और व्याकुल मन से मेरी नींद खुल गई। मैं जग तो गया,परंतु मेरे मन में वही दृश्य घूम रहा था। मैं सोच रहा था कि,हमारी भारतमाता के हृदय में अभी भी कितने कष्ट हैं। इन कष्टों के प्रति हम कब जागेंगे ? कब यह समाप्त होंगे ?
आइए दोस्तों,इस ‘स्वतंत्रता दिवस’ पर हम संकल्प करें कि,अपनी भारतमाता के इन कष्टों को दूर करने में हम हर सम्भव योगदान देंगे।

परिचय–साहित्यिक नाम `राजूराज झारखण्डी` से पहचाने जाने वाले राजू महतो का निवास झारखण्ड राज्य के जिला धनबाद स्थित गाँव- लोहापिटटी में हैl जन्मतारीख १० मई १९७६ और जन्म स्थान धनबाद हैl भाषा ज्ञान-हिन्दी का रखने वाले श्री महतो ने स्नातक सहित एलीमेंट्री एजुकेशन(डिप्लोमा)की शिक्षा प्राप्त की हैl साहित्य अलंकार की उपाधि भी हासिल हैl आपका कार्यक्षेत्र-नौकरी(विद्यालय में शिक्षक) हैl सामाजिक गतिविधि में आप सामान्य जनकल्याण के कार्य करते हैंl लेखन विधा-कविता एवं लेख हैl इनकी लेखनी का उद्देश्य-सामाजिक बुराइयों को दूर करने के साथ-साथ देशभक्ति भावना को विकसित करना हैl पसंदीदा हिन्दी लेखक-प्रेमचन्द जी हैंl विशेषज्ञता-पढ़ाना एवं कविता लिखना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“हिंदी हमारे देश का एक अभिन्न अंग है। यह राष्ट्रभाषा के साथ-साथ हमारे देश में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। इसका विकास हमारे देश की एकता और अखंडता के लिए अति आवश्यक है।

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