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आत्मनिर्भर

अनिता मंदिलवार  ‘सपना’
अंबिकापुर(छत्तीसगढ़)
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“उमा,कब तक दूसरों के बच्चों से खेलती रहोगी ? अब अपना भी सोचो।”
पास खड़ी मिसेज शर्मा ने कहा।
उमा बस-“जी चाची जी” ही कह पायी,अब कहे भी क्या ? ऐसी बातों से अब अक्सर उसे दो- चार होना ही पड़ता है।
शादी के पाँच वर्ष बाद भी उसकी गोद सूनी है,पर प्रणय ने कभी कोई शिकायत नहीं की,न ही उसके व्यवहार में अंतर दिखाई दिया।
समय पंख लगाकर उड़ने लगा। पाँच से दस वर्ष,दस से बारह,सब इलाज कराकर देख लिया,पर शायद नियति को मंजूर नहीं कि कोई कली,कोई पौधा इस आँगन की रौनक बने।
इलाज के दौरान अवकाश लेते रहने से नौकरी
भी चली गई।
दोनों पति-पत्नी मन बहलाने घूमने निकले,गर्मी बहुत ही ज्यादा थी। वृक्ष नहीं के बराबर वहाँ। दोनों ने एक-दूसरे को देखा,जैसे एक ही बात सोच रहे हों। “उमा,मैं जो सोच रहा हूँ कहीं तुम भी तो नहीं…..!”
“हाँ प्रणय,मैं भी वही सोच रही हूँ।” दोनों की आपसी समझ बहुत ही अच्छी थी। अगले दिन से ही योजना को फलीभूत करने में लग गए ।
वहाँ कुछ दिन बाद ही छोटे पौधों की कतार सड़क के किनारे दिखाई देने लगी। दोनों ने बहुत ही मनोयोग से उन पौधों को सींचा और उन्हें बढ़ते हुए देखकर एक-दूसरे से कहा-“कौन कहता है कि हमारे बच्चे नहीं,आज से यही हमारी संतान हैं।”
धीरे-धीरे सबका सहयोग भी मिलने लगा। शासन ने भी भरपूर मदद की इस अच्छे काम के लिए। और सच! समय के साथ-साथ पौधों ने वृक्ष का रूप धारण कर लिया और हरियाली ही हरियाली वहाँ दिखाई देने लगी।
वृक्षों पर बैठी चिड़िया जब चहचहाती,कोयल मधुर गान करती,वे दोनों सभी दु:ख भूल जाते। आज वे वृक्ष तैयार थे,उन्हें आत्मनिर्भर बनाने की राह पर,साथ ही छोटे नये पौधे उनकी जगह लेने के लिए भी तैयार बैठे थे।
उदास चेहरे खिल उठे थे। उनके इस प्रकृति प्रेम को देखकर शासन ने भी सम्मानित किया। वृक्षारोपण ने उनके जीवन को नया आयाम दिया,साथ ही आत्मनिर्भरता के साथ मान-सम्मान भी दिलाया। उनका सपना साकार हो उठा था,जीने का मकसद जो उन्हें मिल गया था ।

परिचय : अनिता मंदिलवार  ‘सपना’ की जन्मतिथि-४ फरवरी एवं जन्मस्थान-नालन्दा में बिहार शरीफ है। आपकी  शिक्षा एम.एस-सी.(वनस्पति शास्त्र),एम.ए.(हिन्दी-अंग्रेजी साहित्य),बी.एड. सहित पीजीडीसीए है। श्रीमती मंदिलवार का कार्यक्षेत्र-व्याख्याता(हाईस्कूल-अंबिकापुर,छग)है। आपका निवास छत्तीसगढ़ राज्य के सरगुजा जिला के अंबिकापुर शहर स्थित जरहागढ़ में है। सामाजिक क्षेत्र में आप शिक्षा क्षेत्र में विशेष योगदान देती हैं। पहले एक साहित्यिक संस्था की अध्यक्ष रही हैं। लेखन की बात की जाए तो गद्य और पद्य में कविता,ग़ज़ल,नाटक,रुपक, कहानी सहित हाइकू आदि लिखती हैं। सम्मान के रूप में आपको लेखन के लिए काव्य अमृत,हिन्दी सागर सम्मान मिले हैं। कई समाचार पत्रों में कविताओं-लेख का प्रकाशन होता रहा है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा आयोजित हिन्दी निबंध प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार एवं ‘मदर्स-डे’ स्पर्धा में द्वितीय पुरस्कार सहित  प्रश्न मंच स्पर्धा में प्रथम और दूरदर्शन से प्रसारित ‘भवदीय’ कार्यक्रम में सर्वश्रेष्ठ पत्र-लेखन का पुरस्कार भी हासिल किया है। लेखन के क्षेत्र में आप कई साहित्यिक संस्थाओं से भी संबद्ध हैं। साथ ही दूरदर्शन रायपुर से कविता पाठ, आकाशवाणी अंबिकापुर से कविता, कहानी, नाटक और आपके रुपक का भी प्रसारण हुआ है। आपकी दृष्टि लेखन का उद्देश्य-साहित्य सेवा,साहित्य के माध्यम से जागरुकता लाना और अपनी भावनाओं से समाज में हो रही कुप्रथाओं के विरुद्ध लेखन,अपने मन के भावों को पन्ने पर उतारना और समाज में जागरूकता लाने के लिए लेखन करना हैl श्रीमती मंदिलवार का साहित्यिक उपनाम-`सपना`हैl वर्तमान में आप एक साहित्यिक संस्था की जिला सरगुजा (छग) में कार्यकारिणी सदस्य तथा महिला मंच (अंबिकापुर) की सदस्य भी हैं। प्रकाशन में आपके खाते में ६ साझा संकलन-हाइकु की सुगंध,काव्य अमृत एवं ग़ज़ल संग्रह-गुंजन आदि हैंl इसी प्रकार प्रतिष्ठित दैनिक अखबारों और पत्रिकाओं में भी आपकी रचित कविताओं-लेखों का प्रकाशन हुआ है। सम्मान में आपको काव्य अमृत सम्मान के साथ ही हिन्दी सागर सम्मान,दोहा शतकवीर सम्मान,हिन्दी साहित्यसेवी सम्मान,साहित्य के दमकते दीप साहित्यकार सम्मान-२०१७ और दिसम्बर २०१७ में हुए साहित्यिक सम्मेलन में राज्य और राज्य के बाहर साहित्य में योगदान के लिए सम्मानित  किया जाना  प्रमुख हैl उपलब्धि यह है कि,जन परिषद(भोपाल) द्वारा प्रकाशित ग़न्थ ‘लीडिंग लेडीज ऑफ मध्यप्रदेश एण्ड छत्तीसगढ़` एवं हू ‘ज’ हू में आपके जीवन परिचय का प्रकाशन हुआ है।

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